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BJP की बदली नीति से पार्टी को उत्तर भारत में नुकसान…!
पूरे भारत में इस समय लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है। जनता लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा ले रही है और अपनी सरकार चुनने के लिए मतदान कर रही है। इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है और किसका कमजोर। आज इसी पर चर्चा करेंगे।
दरअसल 2014 के बाद से लगातार BJP का कैडर पूरे देश में बढ़ता जा रहा है। वज़ह है केवल एक शख्स जिसका नाम है नरेंद्र मोदी। बात चाहे 2014 की हो या 2019 की बीजेपी ने पूरे देश का माहौल बदल के रख दिया है। पूरे दशक में इतनी बड़ी जीत के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद है और इतने बुलंद हैं कि अब वह 400 पार का नारा दे कर 2024 के चुनाव में खड़ी हुई है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर देखा जाए तो कांग्रेस इतनी कमजोर भी नजर नहीं आती, जितनी 2014 और 2019 में थी। इसकी वजह तलाशी जाए तो बेरोजगारी – महंगाई और धीरे-धीरे बढ़ती मुस्लिम आबादी भी इसका बड़ा कारण है।
विधानसभा चुनाव के बाद बदली BJP की नीति
वहीं अगर राजनीतिक पहलू से देखा जाए तो हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की नई रणनीति का भी इस लोकसभा चुनाव पर गहरा असर पड़ता दिखाई दे रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल करके कई राज्यों में अपनी सरकार बनाई लेकिन नई रणनीति के तहत वहां पर मुख्यमंत्री के चेहरे बदल दिए गए। जैसे मध्य प्रदेश में मामा के नाम से प्रसिद्ध शिवराज चौहान को हटाकर वहां डॉ मोहन यादव को सीएम बना दिया गया। वहीं राजस्थान में भी कद्दावर और दिग्गज नेता वसुंधरा राजे को साइड लाइन करते हुए पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को अचानक सीएम पद पर बैठा दिया गया। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जैसे दिग्गज नेता को बीजेपी ने सरकार बनने के बाद दरकिनार कर दिया। हिंदी पट्टी राज्यों में विधानसभा चुनाव में मिली बहुमत से केंद्रीय नेतृत्व का इतना कॉन्फिडेंस बड़ा के उन्होंने अपने सभी सीनियर लोगों को साइड लाइन कर दिया। ऐसे में नए चेहरे पर दाव खेलने का असर अब लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार यानी भाजपा पर देखने को मिल रहा है। उत्तरी राज्यों में सत्ता नये चेहरों को सौंपने के बाद अब लोकसभा के चुनाव में इनकी क्षमता और कम एक्सपीरियंस भाजपा के लिए लोकसभा चुनावों पर असर डालता साफ नज़र आ रहा है।
राजस्थान और एमपी में बदलाव
राजस्थान की ही बात की जाये तो बीजेपी से पूर्व सीएम रही वसुंधरा राजे प्रदेश का एक बड़ा चेहरा है, उन्हें साइड लाइन करने के बाद अब लोकसभा चुनावों में राजस्थान सभी 25 सीट वापस लेने का सपना छोड़ चुका है, खुद गृह मंत्री अमित शाह एक इंटरव्यू में बोल चुके हैं कि राजस्थान में उनकी सीटे कम हो रही हैं । कहीं ना कहीं उसकी बड़ी वज़ह पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी है। 2014 और 2019 में वसुंधरा राजे ने लोकसभा चुनावों में जमकर प्रचार किया था, लेकिन 2023 विधानसभा चुनाव जितने के बाद साइड लाइन हुई राजे ने लोकसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति सिर्फ आपने बेटे दुष्यंत सिंह की लोकसभा सीट झालावाड़ में ही दर्ज कराई। इसका खामियाजा यह हो सकता है कि पूरे प्रदेश में भाजपा को सभी 25 सीट ना मिले।
वही मध्य प्रदेश में भी शिवराज चौहान को साइड लाइन करने के बाद सभी 29 सीटों पर भाजपा की दावेदारी करना थोड़ा मुश्किल दिख रहा है। देखा जाए तो मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों में ही नए सीएम मुख्यमंत्री बने डॉ. मोहन यादव और भजनलाल शर्मा जोर शोर से लोकसभा चुनाव में प्रचार करते नजर आ रहे हैं । लेकिन उनकी रैली और सभा में उतनी भीड़ नजर नहीं आ रही.. जितनी की पुराने नेताओं के रोड शो या सभाओं में देखने को मिलती थी। छत्तीसगढ़ में भी फिलहाल ऐसा ही कुछ नजररा देखने को मिल रहा है।
राम मंदिर से दक्षिणी क्षेत्र को जितने का दाम –
राम मंदिर निर्माण के बाद भाजपा अयोध्या से
उत्तरी भारत में अपने गढ़ को जीतने का दाव खेला था तो वही रामलाल के रूप में दक्षिण से आई मूर्ति स्थापित करके दक्षिण भारत को जीतने की रणनीति तय की थी। लेकिन फिलहाल लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा भाजपा को ज्यादा फायदा दिलाता नजर नहीं आ रहा।
बढ़नी मुस्लिम आबादी और बढ़ते उनके वोट
प्रधानमंत्री की सलाहकार कमेटी ने हाल ही में एक रिपोर्ट उजागर करते हुए बताया कि देश में लगातार बहू सांख्यक हिंदू कम होते जा रहे हैं । वहीं मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ती चली जा रही है।
यही नहीं लोकसभा चुनाव में भी अगर वोट बैंक की बात की जाए तो मुस्लिम बहु संख्यक क्षेत्रों में वोटिंग का प्रतिशत हिन्दु क्षेत्रों से ज्यादा बढ़ा है। यह आंकड़ा भी भाजपा के लिए सुखद नहीं है।
फिर भी कांग्रेस के मुकाबले भाजपा भारी
आंकड़े भले ही भाजपा के लिए सुखद ना हो लेकिन ऐसा भी नहीं है कि देश में भाजपा हरार जाएगी और कांग्रेस जीतेगी। कांग्रेस के सामने भी कई ऐसे नेगेटिव पॉइंट्स है जिनकी वजह से कांग्रेस भी भाजपा के आगे ज्यादा बढ़ती हुई नज़र नहीं आ रही है। जैसे कांग्रेस का चेहरा राहुल गांधी अमेठी से गायब होकर अब रायबरेली से चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं। अमेठी से यू पलायन हो जाना भी राहुल गांधी की छवि आम जनता में नेगेटिव असर डालती नजर आ रही है।वहीं लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी नजर नहीं आ रही तो वही उनके पति रॉबर्ट वाड्रा भी चुनाव लड़ने में अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं यह छवि भी कांग्रेस के लिए नेगेटिव दिखाई देती है।
कांग्रेस के बयान वीर –
लोकसभा चुनाव आते ही भाजपा हर कदम पर कांग्रेसी बयान् वीरों पर फोकस देती दिखाई दे रही है। राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु सेम पित्रोदा ने पहले ही बयान में विरासत टैक्स जैसे बयान देकर कांग्रेस को मुश्किलों में डाला। वहीं अब मनी शंकर अय्यर ने भी पाकिस्तान से डरने की बात कह कर भाजपा को कांग्रेस को फिर से घेरने का एक नया मुद्दा दे दिया। वही बीच में राहुल गांधी अमेठी छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने चले गए। कांग्रेस के बयान वीर और वाद विवाद का सिलसिला जहां थमने का नाम नहीं ले रहा था वहां Sam Pitroda ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों का वर्गीकरण करके एक बार फिर भाजपा को तलवार सोपने का काम कर दिया। वही मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पाटीदार ने भी पूर्व मंत्री रही एक महिला इमरती देवी कोलेकर भी एक बयान दिया। जिसने भाजपा को एक बार फिर कांग्रेसी नेताओं और उनकी महिलाओं के प्रति सोच और नजरिया को लेकर प्रश्न खड़ा करने का मौका दिया।
हालांकि लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या रहेंगे यह 4 जून को पूरी दुनिया को पता चल जाएगा। लेकिन भाजपा को सिर्फ राम मंदिर के मुद्दे पर राजनीतिक माइलेज मिलेगा यह कहना थोड़ा मुश्किल होगा।
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