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राजस्थान में उठ रही अलग भील प्रदेश की मांग, उछाला जा रहा हिन्दू बनाम गैर हिन्दू का मुद्दा
दक्षिण राजस्थान का मानगढ़ धाम, जो आदिवासियों का एक प्रमुख तीर्थ स्थल तो है ही, प्रकृति ने भी पूरे मनोयोग से यहाँ अनुपम छटा बिखेरी है। इस सुरमई और पावन धरती से अब कुछ ऐसी आवाजें आ रहीं हैं, जो प्रदेश को कई मायनों में प्रभावित करेंगी। राज्य के बांसवाड़ा जिले में स्थित मानगढ़ धाम के इस तीर्थ स्थल से अलग भील प्रदेश बनाये जाने की मांग जोर पकड़ रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के 49 जिलों को उनके राज्य से अलग कर एक अलग राज्य बनाये जाने की मांग हो रही है, जिसे भील प्रदेश कहा जायेगा।
आपको बता दें कि बीते गुरुवार भील प्रदेश की मांग को लेकर आदिवासियों ने एक रैली निकाली। हालांकि सुरक्षा एजेंसियां इससे सतर्क हो गई, लेकिन राजनीति के अलग नजरिये होते हैं। बहरहाल, अहम सवाल ये है कि भील प्रदेश की मांग क्यों उठाई जा रही है? एक सवाल ये भी है कि राजनीति से इसका क्या सम्बन्ध है और फिर एक सवाल और आता है, जो सबसे ज्यादा महत्व रखता है। वो सवाल है कि क्यों इस मामले में हिन्दू बनाम गैर हिन्दू का मुद्दा उछल रहा है?
लोकसभा चुनावों में गरमाया था मुद्दा
हालांकि भील प्रदेश की ये मांग नई नहीं है। पिछले लोकसभा चुनावों में भी ये मुद्दा काफी गरमाया था। बांसवाड़ा के मानगढ़ में चार राज्यों के आदिवासी इकट्ठा हुए हैं और इन राज्यों के 49 जिलों को अलग कर नया प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं।
राजस्थान के सांसद ने उठाया था मुद्दा
भारत आदिवासी पार्टी के राजस्थान के सांसद राजकुमार रोत ने अपने चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को जमकर भुनाया था और इसके उन्हें सकारात्मक परिणाम भी मिले थे। नतीजतन रोत ने आदिवासी क्षेत्र के बड़े नेता महेन्द्रजीत मालवीय को पछाड़ दिया, जो अब तक इस हिस्से के सबसे बड़े चेहरे थे। रोत ने यहाँ जीत कर अलग पॉइंट ऑफ व्यू सेट किया है।
राजस्थान की सियासत पर गहरा प्रभाव
राजस्थान की सियासत में आदिवासियों का मुद्दा बेहद अहम है। ये इसी बात से समझ आ जाता है कि इस क्षेत्र को भेदने के लिए बीजेपी के वर्तमान मंत्री मदन दिलावर को माफी मांगनी पड़ी थी। ये भी तब हुआ, जब बीजेपी की महारैली होने वाली थी। मंत्री दिलावर को पूरे विधानसभा सदान में आदिवासियों के लिए कही गई अपनी बात से पलटना भी पड़ा था और खेद भी प्रकट करना पड़ा था।
दोनों बड़ी पार्टियों के लिए खास बेल्ट
आदिवासियों का ये बेल्ट राजस्थान की दोनों बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के लिए खास है। बात करें बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव की, तो यहाँ दोनों ही पार्टियों के बड़े नेताओं ने दौरे किये हैं। फिर चाहे वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृहमंत्री अमित शाह… कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राहुल गांधी तक ने भी इस बेल्ट को अनदेखा नहीं किया। हालांकि दोनों ही पार्टियों पर आदिवासी समाज से आये नेता आरोप लगाते रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि भील प्रदेश की मांग आने पर दोनों पार्टियां एक हो जाती हैं। बावजूद इसके इस बार लोकसभा चुनाव में बीएपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था।
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ये हैं वो चार राज्यों के वो जिले, जिन्हें एक कर भील प्रदेश की मांग की जा रही है-
राजस्थान: बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली
गुजरात: अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरूच
मध्यप्रदेश: इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी और अलीराजपुर
महाराष्ट्र: नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार और वलसाड़
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