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कोहिनूर की कहानी : मर्दों के लिए श्राप था कोहिनूर हीरा

by PP Singh
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कोहिनूर की कहानी

कोहिनूर की कहानी : मर्दों के लिए श्राप था कोहिनूर हीरा

कोहिनूर हीरा के बारे में आपने बहुत कुछ सुना और पढ़ा होगा। बीते 800 वर्षों से यह हीरा एक राजा से दूसरे राजा के पास घूमता रहा है। कभी किसी को तोहफे के रूप में दिया गया तो कभी किसी बाहरी आक्रमणकारी ने हमला कर इसे जीत लिया। फिलहाल यह इंग्लैंड की रानी के ताज की शोभा बढ़ा रहा है।

कोहिनूर हीरा आन्ध्र प्रदेश के गोलकुंडा के एक खान से से निकला था। करीब 800 साल पूर्व निकाले गए इस हीरे के लिए हिन्दू ग्रांथ में लिखा गया कि इस हीरे को जो भी हासिल करेगा वो दुनिया पर राज करेगा। पर वो पूरी तरफ से बर्बाद भी हो जाएगा। सबसे पहले यह हीरा ग्वालियर के राजा विक्रमजीत सिंह के पास पहुंचा। लेकिन बाबर ने इसे हासिल कर लिया। बाबर भी इस हीरे को ज्यादा दिन अपने पास नहीं रख सका, बाबर से कोहिनूर को नादिर शाह ने लूट लिया। इसके बाद नादिर शाह के पोते ने शाहरूख मिर्जा ने इस हीरे को छीन लिया। वहां से होता हुआ यह हीरा अहमद शाह अब्दाली के पास पहुंचा। लेकिन इस हीरे ने वहां बर्बादी ला दी और अफगानी आपस में लड़कर मर गए। वहां से कोहिनूर को पंजाब के महाराजा विक्रमजीत सिंह अपने साथ ले आये। उनके बाद विरासत में यह हीरा महाराजा दिलीप सिंह को मिला। लेकिन 1849 में ब्रिटिश सरकार ने इसे ले लिया और अपने साथ ब्रिटेन ले गये।

ऐसे फिर लौटा कोहिनूर भारत

ईरानी शासक नादिर शाह ने 1738 में मुगलों पर आक्रमण कर उन्हें हराया और 13वें मुगल बादशाह अहमद शाह से इस हीरे को छीनकर पहली बार भारत के बाहर ले गया। उसने मुगलों से मयूर तख्‍त भी छीन लिया था और माना जाता है कि नादिर शाह ने इस हीरे को मयूर तख्‍त में जड़वा दिया था। नादिर शाह ने ही इस हीरे को नाम दिया था कोहिनूर।

नादिर शाह की हत्‍या के बाद उनके पोते शाहरुख मिर्जा को कोहिनूर मिला। जिन्‍होंने अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी की मदद से खुश होकर उन्‍हें तोहफे में कोहिनूर सौंप दिया। दुर्रानी का पोता सूजा शाह दुर्रानी इसे अपने ब्रेसलेट में पहनता था। सूजा शाह जब पेशावर (पाकिस्‍तान) आया तो सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 में इस हीरे को सूजा शाह से हथिया लिया और कोहिनूर एक बार फिर भारत में आ गया। हालांकि, रणजीत सिंह ने इसके बदले सूजा को 1.25 लाख रुपये दिए थे।

कई बार तराशा… वजन घटा.. फिर भी सबसे बड़ा हीरा है कोहिनूर

कोहिनूर हीरा करीब 800 साल पहले आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिला स्थित गोलकुंडा की खदान से निकाला गया था। तब इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था और इसका कुल वजन 186 कैरेट था। हालांकि, इसके बाद से इस हीरे को कई बार तराशा गया और इसका मूल रूप 105.6 कैरेट का है। जिसका कुल वजन करीब 21.12 ग्राम रह गया है। हालांकि, अब भी यह दुनिया का सबसे बड़ा तराशा हीरा है। कहा जाता है कि जमीन से सिर्फ 13 फीट की गहराई पर यह हीरा मिला था।

बेशकीमती है यह हीरा

वैसे तो इसकी कीमत का अंदाजा लगाना मुश्किल है और न ही कभी ऑफिशियल तौर पर इसकी कीमत का खुलासा किया गया। क्‍योंकि इसे कभी बेचा या खरीदा नहीं गया। हालांकि, अनाधिकृत तौर पर इस हीरे का आकलन करीब 1 अरब डॉलर (8 हजार करोड़ रुपये) की कीमत के आसपास है। यह कीमत दुनिया के किसी भी हीरे की कीमत से कहीं ज्‍यादा है।

महारानी विक्‍टोरिया तक पहुंचा कोहिनूर

अंग्रेज और सिखों के बीच हुए पहले युद्ध में हार के बाद गुलाब सिंह को जम्‍मू-कश्‍मीर का पहला राजा नियुक्‍त किया गया। 29 मार्च, 1849 को सिखों और अंग्रेजों के बीच दूसरा युद्ध हुआ और सिखों का शासन खत्‍म हो गया। महाराजा की अन्‍य संपत्तियों के साथ ही कोहिनूर को भी क्‍वीन विक्‍टोरिया को सौंप दिया गया। फिर इसे 1850 में बकिंघम पैलेस में लाकर महारानी विक्‍टोरिया के सामने पेश किया गया और डच फर्म कोस्‍टर ने 38 दिनों तक इस हीरे को तराशा फिर रानी के ताज में जड़ दिया गया।

श्राप है या वरदान.. क्या राज़ है… जो अंधेरे में भी चमकता है ये जंगल!

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