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Uttarakhand Temple : यह मंदिर लाटू देवता का है।
हमारे देश भारत का इतिहास सबसे प्राचीन और सभी धर्मों की आधारशीला है। सनातन धर्म में ऐसे कई रहस्यमयी मंदिर हैं जो हैरात में डाल देते हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में जहां प्रवेश करते ही आप अंधे हो सकते हैं। इसलिए इस मंदिर में सबका प्रवेश निषेध है। यह मंदिर लाटू देवता का है। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में नागराज अद्भुत मणि के साथ रहते हैं। जिसे आम इंसान अपनी आंखों से नहीं देख सकता। उस मणि में इतना प्रकाश है कि कोई भी इंसान उसकी रोशनी में अंधा हो सकता है।
पुजारी भी आंखों नाक पर पट्टी बांधकर करते हैं पूजा
लाटू देवता का मंदिर चमोली जिले के अंतिम गांव वाण में है। जहां पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में नागराज अद्भुत मणि के साथ रहते हैं। मणि की तेज रोशनी से इंसान अंधा भी हो सकता है। इसके साथ ही, पुजारी के मुंह से आने वाली गंध तक देवता तक पहुंचनी चाहिए, लेकिन नागराज की विषैली गंध को पुजारी की नाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए। ऐसे मंदिर के दरवाजे साल में एक बार वैशाख महीने की पूर्णिमा के मौके पर खुलते हैं। कपाट खुलने के समय, मंदिर के पुजारी अपनी आंखों पर पट्टी बांधते हैं और कपाट खुलने के बाद, श्रद्धालु देवता के दर्शन दूर से ही करते हैं।
देवी पार्वती ने दिया था श्राप
पौराणिक कथाओं के अनुसार लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या देवी नंदा देवी (जिन्हें पार्वती के नाम से जाना जाता है) के धर्म भाई हैं। जब भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ, तो पार्वती को विदा करने के लिए सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इसमें उनके चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे। रास्ते में लाटू देवता को प्यास लगी। वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इतने में उन्हें एक कुटिया दिखी, जिसमें एक साथ दो मटके रखे थे। एक में पानी था और दूसरे में मदिरा थी। लाटू देवता ने गलती से मदिरा पी ली और उत्पात मचाने लगे। इससे मां नंदा देवी को गुस्सा आया और उन्होंने लाटू देवता को श्राप दे दिया। नंदा देवी ने गुस्से में लाटू देवता को बांधकर कैद करने का आदेश दिया।
नागराज के रूप में कैद हैं लाटू देवता
लाटू देवता ने बाद में पश्चाताप किया और देवी से श्रमा मांगी। जिसपर मां नंदा देवी ने कहा कि वाण गांव में उसका मंदिर होगा और वैशाख महीने की पूर्णिमा को उसकी पूजा होगी। यही नहीं हर 12 साल में जब नंदा राजजात जाएंगी, तो लोग लाटू देवता की भी पूजा करेंगे। तभी से नंदा राजजात के वाण गांव में पड़ने वाले 12वें पड़ाव में लाटू देवता की पूजा की जाती है। लाटू देवता वाण गांव से हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा को भेजने के लिए उनके साथ जाते हैं। लाटू देवता की वर्ष में केवल एक ही बार पूजा की जाती है। वहीं, हर वर्ष वैशाख पूर्णिमा भगवान लाटू देवता के कपाट खोले जाते हैं। माना जाता है कि लाटू देवता इस मंदिर में नागराज के रूप में कैद हैं।