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Approach Vs Common Man: क्या पहुंच बन गई भ्रष्टाचार की नई परिभाषा?

by PP Singh
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Approach Vs Common Man

Approach Vs Common Man: क्या पहुंच बन गई भ्रष्टाचार की नई परिभाषा?

ब्यूरो रिपोर्ट, लोकल पत्रकार।आपने एक कहावत जरूरी सुनी होगी। ना बाप बड़ा ना भैया… सबसे बड़ा रुपया। लेकिन क्या आपको पता है जहां पैसा भी काम नहीं आता… वहां क्या काम आता है। हम आपको बताते हैं उस शब्द का नाम है …अप्रोच। जो आजकल हर दूसरा आदमी अपनी जेब में लेकर घूमता है। क्या आपको भी लगता है जिसके पास अप्रोच नहीं… उसका जीना बेकार है। क्या अप्रोच लगवाने और लगाने वाला शख्स निष्पक्ष होता है। हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताए। लेकिन इस वीडियो को पूरा देखने के बाद।

अप्रोच- यानि की पहुंच। क्या आपके पास अप्रोच है। किसी नेता की, किसी अधिकारी की, किसी ऐसे शख्स की जिसके दम पर आपका फंसा काम चुटकी में हो जाए। क्या आपके पास अप्रोच है किसी जज की, वकील की.. किसी पुलिसवाले की। किसी मीडिया वाले की। किसी बिजनेसमैन की। जिसके बलबूते आप अपना हर वो काम आसानी से कर सकते हैं जिसके लिए ना जाने आपके कितने रुपए खर्च हो जाते हैं और कितना ही वक्त भी खर्च हो जाता है। हमारे देश में जीने से लेकर मरने तक अप्रोच के बड़े ही मायने है। अस्पताल में डॉक्टर की अप्रोच, मंदिर में पुजारी की अप्रोच, सरकार में किसी नेता की अप्रोच, कोर्ट में किसी जज या वकील की अप्रोच..पुलिस थाने में किसी पुलिसवाले की अप्रोच यहां तक की सरकारी हो या प्राइवेट काम करवाने हो… तो भी उसके लिए किसी अधिकारी की अप्रोच की जरूरत पड़ती है। सिंपल शब्दों में समझाएं तो जो काम पैसा नहीं कर सकता वो एक अप्रोच कर देती है।

अगर आप ये सोच रहे हैं कि अप्रोच होना क्या बुरी बात है। तो हम आपको बता दें कि अप्रोच भी भ्रष्टाचार का ही एक हिस्सा है। जिसकी अप्रोच होती है वो खुद को किसी भी मुसीबत से बाहर निकलवा लेता है। लेकिन जिसके पास अप्रोच नहीं होती। उसका क्या..।। फिर चाहे वो शख्स मीडिल क्लास हो या फिर गरीब इंसान। क्या किसी इंसान के पास अप्रोच नहीं है… उसके लिंक नहीं है… तो क्या उसका जीना बेकार है। क्या भ्रष्टाचार सिर्फ पैसों से ही जुड़ा है। क्या अप्रोच लगाना भ्रष्टाचार का ही एक हिस्सा नहीं है। कई मर्तबा ऐसा होता है कि सैंकड़ों-हजारों लोगों की लाइन लगी है। लेकिन एक शख्स जिसकी अप्रोच है। वो उन सैंकड़ों-हजारों लोगों को क्रॉस करते हुए सबसे आगे पहुंच जाता है। हालांकि इसके पीछे लोगों का तर्क होता है कि हमारे वक्त की बहुत कीमत है। कौन लाइन में लगकर अपना वक्त बर्बाद करेगा। लेकिन क्या आपने उन हजारों लोगों के बारे में सोचा जो कई घंटों से लाइन में वक्त और पेशंस दोनों की कीमत चुका रहे हैं। इस इंतजार में कि अब उसका नंबर आएगा। ये लाइन कोई भी हो सकती है खास मौके पर मंदिरों में लाइन, रोजाना अस्पतालों की लाइन। किसी का ट्रांसफर रोकने से लेकर ट्रांसफर करवाने तक के लिए भी अप्रोच की जरूरत पड़ती है।

निष्पक्ष और पाक साफ होने के बेशक हम कितने ही लाख दांवे करे। लेकिन हर इंसान कहीं ना कहीं किसी ना किसी से पक्षपात जरूर करता है। कोई परिवार के चक्कर में कोई दोस्ती के लिए तो कोई रिश्तेदारों के लिए, तो कोई जानने वालों के लिए। लेकिन उस शख्स का क्या जिसकी कोई जान पहचान नहीं… जिसकी कोई अप्रोच नहीं। जिसकी कोई पहुंच नहीं। उस शख्स को ही कहा जाता है आम इंसान। क्योंकि अप्रोच लगाने और लगवाने वालों की अपनी ही एक अलग जमात है। इस अप्रोच की वजह से ना जाने कितने ही अपराधी छूट जाते है तो बेगुनाह कभी गुनहगार करार दे दिया जाता है।
किसी की नौकरी लगवानी हो तो भी अप्रोच काम आती है। आप बेशक अप्रोच से नौकरी पा तो लेते हैं। लेकिन आपकी अप्रोच के चक्कर में एक जरुरतमंद, एक मेहनतकश आम इंसान कहीं पीछे रह जाता है। जिसका मेहनत, सिस्टम, इंसानियत, यहां तक की भगवान से भी विश्वास उठ जाता है। इसलिए हमारी आपसे गुजारिश है कि कभी किसी ऐसी अप्रोच का इस्तेमाल ना करें। जिससे किसी दूसरे का नुकसान हो। किसी जरूरतमंद की आस ना टूटे। किसी का हौसला ना टूटे। किसी के अरमां ना टूटे।

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