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Bandheshwar Mahadev Mandir
मुगलों ने भारत में आकर सनातन की प्राचीन सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश की। खासतौर से मुगल राजा औरंगजेब ने भारत में कई मंदिरों का विनाश किया, लेकिन सनातन धर्म इतना कमजोर भी नहीं था कि एक व्यक्ति उसे पूरा खत्म कर सके। भारत देश में कई ऐसी शक्तियां थीं, जिसे औरंगज़ेब ने भी माना और उनके सामने अपने घुटने टेके। उत्तर प्रदेश के रायबरेली व उन्नाव जनपद की सीमा पर सई नदी के तट पर स्थित ऐसा ही एक मंदिर है भंवरेश्वर महादेव का। यहाँ की प्रसिद्धि सुनने के बाद औरंगज़ेब ने इस मंदिर को भी तोड़ने की कोशिश की, लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि मंदिर नहीं टूटा बल्कि उसे मंदिर की फिर से स्थापना करनी पड़ी। बताया जाता है कि औरंगज़ेब अपनी सेना को लेकर इस मंदिर के पास से गुजर रहा था, तो हठ वश उसने शिवलिंग की खुदाई शुरू कर दी। उसने जितना खुदवाया उतना ही विशाल शिवलिंग मिलता गया।
ऐसे पड़ा भंवरेश्वर महादेव नाम
आखिरकार जब अंत नहीं मिला तो सैनिकों से शिवलिंग की तुड़ाई शुरू करवानी चाही, लेकिन जंगल के भंवरों ने सैनिकों पर हमला कर दिया। यह देख औरंगजेब ने शिव जी से क्षमा मांगी और एक गुम्बदनुमा छोटी सी मठिया बनवाई। तब इसका नाम भंवरेश्वर पड़ा। बाद में मंदिर का जीर्णोद्धार कुर्री सुदौली स्टेट ने कराया।
द्वापर युग में भी बनाया था यह मंदिर
भंवरेश्वर महादेव प्राचीन मंदिरों में शुमार है। मान्यता है कि यहां का शिवलिंग द्वापर युग का है। महाबली भीम ने इसकी स्थापना की थी। जब पांडवों को वनवास हुआ था तब इसका नाम भीमाशंकर था।
ऐसे मिले सिद्धेश्वर महादेव
बताया जाता है कि कुर्री सुदौली स्टेट की गायें यहां त्रयंबक नामक वन में चरने आती थीं। लौटने पर सभी गायें महल की गौशाला में दूध देतीं, लेकिन एक गाय दूध ही नहीं देती थी। जब यह बात महल में फैली तो इसकी पड़ताल की गई। तब पता चला कि वन में एक स्थान घनी झाड़ियों से घिरा था, वहीं रोज वह गाय अपना दूध चढ़ा आती थी। जब उस स्थान की सफाई की गई तो मूर्ति दिखाई दी। फिर उसी स्थान पर चबूतरा बनवाकर एक झंडा गाड़ दिया गया और तब इसका नाम पड़ा सिद्धेश्वर महादेव। यही सिद्धेश्वर महादेव कालांतर में भंवरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।