Home दंत कथाएं चित्तौड़गढ़ का गौरवशाली इतिहास: दुर्गों का सिरमौर!

चित्तौड़गढ़ का गौरवशाली इतिहास: दुर्गों का सिरमौर!

by PP Singh
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चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़गढ़ का गौरवशाली इतिहास: दुर्गों का सिरमौर!

ब्यूरो रिपोर्ट, लोकल पत्रकार। राजस्थान अपनी संस्कृति, इतिहास और विरासत के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। वैसे तो राजस्थान समेत पूरे देश में कई गढ़ और किले हैं। लेकिन जिस गढ़ के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। उसको लेकर कहावत है कि गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया…। इस दुर्ग का निर्माण मौर्यवंशी राजा चित्रांगद ने 7वीं सदी में करवाया था।

चित्रकुट की पहाड़ी और मेसा पठार पर मौजूद चित्तौड़गढ़ दुर्ग की समुद्र तल से ऊंचाई 1850 फीट है। इसको मालवा का प्रवेश द्वार और विचित्र गढ़ भी बोला जाता है।

दुर्गों का सिरमौर कहे जाने वाला ये दुर्ग राजस्थान का पहला लिविंग फोर्ट है, जहां खेती भी की जाती है। राजपूताने का गौरव कहे जाने वाले इस दुर्ग का लुक व्हेल की तरह है।

राजस्थान के इतिहास के पिता कर्नल जेम्स टोड ने चित्तौड़गढ़ को जौहर नगरी कहा था। वैसे तो चित्तौड़गढ़ पर कई शासकों ने राज किया और कितनी मर्तबा उस पर आक्रमण भी हुए। चित्तौड़गढ़ पर पहला विदेशी आक्रमण अफगान शासक मामू ने किया था। 1303 में दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था। चित्तौड़गढ़ के पहले साके में रावल रत्न सिंह की हार हुई थी और उनकी पत्नी रानी पद्मिनी ने 1600 राजपूत महिलाओं के साथ जौहर किया था। इसके बाद 1534-35 में सुल्तान बहादुरशाह ने हमला किया था। दूसरे साके में रानी कर्णावती ने कई वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था। चित्तौड़गढ़ में तीसरा साका 1567 ई. मुगल बादशाह अकबर ने हमला किया था। जिसके बाद फत्ता सिसोदिया की पत्नी रानी फूलकंवर के नेतृत्व में 700 राजपूत महिलाओं ने जौहर किया था।

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साहस, शौर्य और बलिदान की निशानी चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के गुहिलवंशियों की पहली राजधानी थी। जिसका आधुनिक निर्माता राणा कुंभा था। जिसने सबसे ज्यादा दुर्गों, मंदिरों और शिवालयों का निर्माण करवाया था। चित्तौड़गढ़ के अंदर 9 मंजिला विजय स्तंभ भी मौजूद है जो विश्व विख्यात है। इसके अलावा इस दुर्ग में कई जलाशय भी मौजूद है। जिनके बीचोबींच रानी पद्मिनी का महल भी मौजूद है। अपने गौरवशाली इतिहास को संजोने की वजह से 2013 में यूनेस्कों की विश्व धरोहर स्थलों की लिस्ट में शामिल किया गया था। यही वजह है कि विरासत और संस्कृति के नायाब इस दुर्ग को निहारने के लिए लोग दूर-दूराज से चित्तौड़गढ़ घूमने आते हैं। अपने अंदर पूरे शहर को समाने की वजह से पर्यटकों की आज भी पहली पसंद के तौर पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग को ही माना जाता है।

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