Home दंत कथाएं Jaisalmer Kuldhara :कुलधरा का काला इतिहास-एक रात में खाली किया पूरा गांव

Jaisalmer Kuldhara :कुलधरा का काला इतिहास-एक रात में खाली किया पूरा गांव

by Local Patrakar
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Jaisalmer Kuldhara: रात में खाली रात में खाली किया गया गाँव

Jaisalmer Kuldhara : रात में खाली  किया गया गाँव

भानगढ़ का नाम तो आपने सुना होगा। लेकिन क्या आप राजस्थान के एक और श्रापित गांव कुलधरा के बारे में जानते है ? चलिए आज हम आपको जैसलमेर के कुलधरा गांव की वो अनकही कहानी सुनाते हैं जो आपने आजतक नहीं सुनी होगी। राजस्थान में भानगढ़ के बाद कुलधरा को सबसे डरावनी जगह होने के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके श्रापित होने के पीछे एक अलग और स्वाभिमान की कहानी है। यह कोई काल्पनिक बात नहीं हैं। घटना है जैसलमेर के रियासत काल की….. शौर्य व स्वाभिमान की प्रतीक जैसलमेर की एक ऐतिहासिक जाति पालीवाल की। जिन्होंने अपने आत्मस्वाभिमान की खातिर छोड दिये एक ही रात में जिले के 84 गांव।

Jaisalmer Kuldhara के कौन थे पालीवाल

मूलतः पाली जिले से संबधित पालीवाल जाति पाली से अपने निर्वासन के बाद जब इधर उधर भटक रही थी तब जैसलमेर रियासत के तत्कालीन महारावल ने उनकी कर्मशीलता एवं उनके हुनर को पहचानते हुए उनसे Jaisalmer Kuldhara में बसने की गुजारिश की ताकि इन कर्मशील लोगों के हुनर को काम में लेते हुए यहां की बंजर मरूभूमि में भी धान की पैदावार को बढावा दिलाया जा सके। तत्कालीन महारावल ने उन्हें यहां बसते समय यह भी वचन दिया था कि आप लोग जब तक चाहें जैसलमेर में रह सकते हैं राज्य आपके बसने का पूरा प्रबंध भी करेगा और आपसे इस राज्य में किसी भी प्रकार का कोई कर या लगान नहीं ली जायेगी। इससे यह अंदाजा भी लगाया जा सकता है कि पालीवाल जाति किस स्तर की कर्मशील व प्रयोगधर्मी रही होगी। पालीवाल अपनी व्यापार कला एवं कुशाग्र बुद्धि के लिये जाने जाते थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर अपना भाग्य बनाया था। थार के रेगिस्तान में गेहूं की तरह की एक गहन पानी की फसल बढाने की कला में माहिर थे वे लोग। वे जिप्सम व चट्टानी भूमि पर फसलों के लिये पानी बनाये रखने तथा सतह के नीचे चलने वाले पानी की पहचान कर उसे उपयोग में लेने वाले लोग थे। उस काल में जैसलमेर की आर्थिक संमृद्धि की चाबी पालीवालों के हाथ में थी। जिसे पालीवालों ने कई बार साबित भी किया था।

Jaisalmer Kuldhara आर्थिक समृद्धि के स्त्रोत थे पालीवाल-

एक घटना के अनुसार महारावल गजसिंह के पिता मूलराज सिंह ने उदयपुर महाराजा को गजसिंह के विवाह के लिये नारियल भेजा जिसे उदयपुर महारावल द्वारा स्वीकार कर अपनी पुत्री राजकुमारी रूपकंपर का विवाह गजसिंह के साथ करने का तय किया। उनकी दो अन्य कन्याओं का विवाह भी किशनगढ व बीकानेर के राजकुमारों के साथ होना तय था इसलिये विवाह का नारियल आते ही उन्हेंने इसे तुरन्त विवाह का महूर्त निकाल बारात लाने का जैसलमेर महारावल को संदेश भेजा। महूर्त से दो दिन पूर्व ही जैसलमेर महारावल को यह संदेश मिला और वे तुरन्त गजसिंह अपने विशिष्ट रिश्ते नातेदारों के साथ उदयपुर के लिये रवाना हो गये। वहां हाथी, घोडा, रथपालकी व स्वर्णपालकियों के साथ किशनगढ व बीकानेर की वैभवशाली बारातों के आगे जैसलमेर की बारात फीकी नजर आ रही थी इस पर उदयपुर दरबार के एक दरबारी ने जैसलमेर महारावल पर फिकरा कसा कि क्या सोच कर जैसलमेर के राजा मेवाड मे शादी संबंध करने आ गये जबकि उनकी तो मेवाड रियासत से तो कोई बराबरी नहीं है। यह बात महारावल मूलराजसिंह को नागवार गुजरी और उन्होंने एक संदेश लिख कर उदयपुर के सेवक को दिया कि वो संदेश में लिखे अनुसार जैसलमेर के कुलधरा गांव जाकर जसरूप जी पालीवाल से मिल कर एक लाख स्वर्णमुद्राएं ले आएं। सेवक मन ही मन हंसता जैसलमेर की ओर आया और कुलधरा पहुंच कर घर के बाहर पशुओं के लिये चारा काट रहे मैले कुचेले कपडे पहने जसरूप जी से मिला और महारावल का संदेश उन्हें दिया। संदेशवाहक उस पालीवाल की हालत देख कर मन ही मन यह सोच रहा था कि इस गरीब के पास कहां एक लाख मुद्राएं होंगी जैसलमेर महारावल ने हमें बेवकूफ बनाया लगता है। लेकिन संदेश पढते ही जसरूपजी ने कहा कि महारावल साहब से शायद गलती हो गई है उन्होंने यह नहीं लिखा कि कौनसी एक लाख स्वर्णमुद्राएं मैं तुम्हें दूं क्यों कि उस जमाने में इरानी, तुर्रानी बादशाही व मुगली छाप की स्वर्णमुद्राएं प्रचलन में थी। जसरूप ने संदेशवाहक को अपने तहखाने में लेजाकर खडा कर दिया और कहा कि जो भी तुम्हें अच्छी लगे वह एक लाख स्वर्णमुद्राएं गिन लें। संदेशवाहक ने उदयपुर जाकर वहां बैठे उदयपुर सहित बीकानेर व किशनगढ राजघरानों को यह बताया कि जैसलमेर के एक साधारण से किसान के घर में अगर इतनी अकूत संपत्ति है तो पूरे राज्य की संपन्नता का आंकलन करना सूरज को दीया दिखाना होगा। इस तरह पालीवाल ब्राहम्णों ने समय समय पर न केवल जैसलमेर रियासत की शान में बढोत्तरी की है बल्कि महारावल की प्रतिष्ठा पर भी आंच नहीं आने दी।

Jaisalmer Kuldhara कैसे हुआ कुलधरा श्रापित

फिर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में पालवालों को छोडनी पडी अपनी बसी बसाई दुनिया…………दीवान सालिमसिंह मोहता…….. जो कि महारावल मूलराजसिंह के राज्य काल का सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में एक था, क्रूर शब्द उस व्यक्ति के लिये छोटा पडता था। कहा जाता था कि इस मरूभूमि में न अकाल का कोई इलाज था और न सालम का। एक अय्याश एवं रंगीन मिजाज के इस दीवान की देन ही कहे जा सकते हैं आज का कुलधरा सहित अन्य 83 उजडे गांव जिन्हें पर्यटक कौतुहल से निहारते हैं।
खाभा गांव के पालीवाल हरजल की नवयौवना बेटी मिरगी जिसके रूप व सौन्दर्य पर कामाशक्त हो इस क्रूर दीवान ने उसे अपना बनाने के लिये कई लालच व प्रलोभन दिये गये। पालीवालों द्वारा दृढ रहते हुए अपने कुल की परम्पराओं का निर्वहण करने और संस्कृति विरूद्ध संबंध नहीं करने की जिद के चलते इस दीवान द्वारा समस्त पालीवालों पर बेजा कर लगा दिये गये ताकि वे इनसे बचने के लिये उस नवयौवना का संबंध उसके साथ कर दें। जबकि उस काल में महारावलों द्वारा पालीवालों को यह वचन दिया गया था कि ब्राहम्ण व कर्मशील होने के कारण उनपर जैसलमेर रियासत में कभी भी किसी प्रकार का कर नहीं लगाया जायेगा।

Jaisalmer Kuldhara एक फैसले पर छोड़ दिया पूरा राज्य

जब सम्वत् 1880 की श्रावणी पूनम के दिन 84 गांव के पालीवालों ने काठोडी के ऐतिहासिक मंदिर में एकत्र होकर एक ही लोटे से नमक मिला पानी पीकर यह संकल्प लिया कि वे अपनी जन्मभूमि-कर्मभूमि भले ही छोड दें लेकिन सालम के अत्याचारों के आगे शीस नहीं झुकायेंगे। अर्थात न तो वे सालिम सिंह के लगाये टैक्स को चुकायेंगे न ही उसकी हवस पूर्ती के लिये अपनी बहूबेटियों को उसके महल में भेजेंगे। इसी संकल्प के साथ उन्होंने हमेशा के लिये जैसलमेर को कह दिया अलविदा। Jaisalmer Kuldhara

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