पूरे प्रदेश में गणगौर का उत्सव मनाया जा रहा है। हर जिले में पूजी जाने वाली गणगौर की एक अलग कथा है, इसका एक अलग इतिहास है। इस गणगौर का अपना खुद का बैंक अकाउंट भी है। यही नहीं जोधपुर में आज के दिन निकाली जाने वाली शोभायात्रा के करीब 7 लाख लोग दर्शन भी करते हैं।
72 सालों के इतिहास को समेटे इस गणगौर की पूरी कहानी पढ़िए
राखी हाउस से इन्हीं गलियों से गणगौर की सवारी निकलती है। इसके बाद मुख्य मार्ग पर आती है। राखी हाउस से इन्हीं गलियों से गणगौर की सवारी निकलती है। इसके बाद मुख्य मार्ग पर आती है। तीसरी पीढ़ी कर रही आयोजन
कमेटी के संचालक मनमोहन भैया (भीम सा) बताते हैं- 1952 में राखी हाउस से मेरे दादा बंशीलाल भैया ने गणगौर के आयोजन की इच्छा अपने मित्र नारायण दास सोनी व अमरचंद मूंदड़ा को बताई तब से उन्होंने जिम्मेदारी संभाली।
राखी हाउस से सोने-चांदी के व्यापारी बंशी लाल भैया, नारायण दास सोनी व अमरचंद मुंदडा ने जिम्मेदारी उठाई और गणगौर की सवारी को शुरू किया। तब से लेकर लगातार इस गणगौर की सवारी निकाली जाती है। हमारी पिछली 3 पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है।
गवर माता को एक दिन पहले सजाया जाता है। उनका सोने के गहनों से श्रृंगार किया जाता है। गवर माता को एक दिन पहले सजाया जाता है। उनका सोने के गहनों से श्रृंगार किया जाता है। भीम सा बताते हैं– 11 अप्रैल गुरुवार को 72 वां मेला भरेगा। गुरुवार शाम 5 बजे राखी हाउस से ये शोभायात्रा शुरू होकर राखी हाउस दोबारा लौट आती है। इस गणगौर को लेकर यह मान्यता है कि इससे जो भी मुराद मांगे वह पूरी होती है। यह भी एक कारण है कि वर्ष भर में एक दिन जब यह गणगौर बाहर आती है और मेला भरता है तब मन्नत मांगने हजारों श्रृद्धालु पहुंचते हैं।
2 किलो यानी करीब 1 करोड़ का सोना पहले गणगौर की सवारी 2 किलो यानी करीब 1 करोड़ का सोना पहले गणगौर की सवारी पहली बार आया था 74 रुपए का खर्चा
भीम सा कहते हैं– राखी हाउस गणगौर सज-धज कर निकाली जाती है। पिछले 72 वर्ष से यही परंपरा चली आ रही है। उस समय इस आयोजन पर 74 रुपए खर्च हुआ, पहली शोभायात्रा में पुरुष पैदल ही सवारी लेकर जाते और राजा-रानी, दरोगा आदि के वेश बना कर निकलते थे। धीरे-धीरे हाथी-घोड़े व पालकी के साथ इसका आयोजन होने लगा। 1952 में जहां शोभा यात्रा के रास्तों में अंधेरा रहता था आज पूरे 10 किमी के एरिया में रोशनी से जगमग रहती है। अब करीब खर्च 9 लाख रुपए हो गया है।
भीम सा ने बताया- गणगौर की सवारी धूमधाम से निकलती है। इसमें 5 बैंड के साथ गोल्ड प्लेटेड पालकी में गणगौर की सवारी निकलती है। इस बार इस सवारी में 30 से अधिक झांकियां भी शामिल हैं। शोभायात्रा के दौरान रास्ते में आने वाले हर घर में गवर की पूजा होती है। सवारी को हर घर में रोका जाता है। जिस रूट से गुजरते है वहां सब इसकी पूजा करते है।
ससुराल राखी हाउस में गणगौर को सजाने के तैयार करती महिलाएं। पिछले 72 सालों से राखी हाउस से ही गणगौर की सवारी निकाली जा रही है।
ससुराल राखी हाउस में गणगौर को सजाने के तैयार करती महिलाएं। पिछले 72 सालों से राखी हाउस से ही गणगौर की सवारी निकाली जा रही है।
2 दिन रुक कर पीहर लौट आती है गणगौर
शाम को साढ़े पांच बजे सवारी निकलती है रात ढाई बजे घंटाघर पहुंचते हैं। ढाई बजे पूजा करके जल पिलाकर राखी हाउस में आते हैं। इस दिन यह गणगौर हट्डियों के चौक अपने ससुराल से राखी हाउस अपने पीहर आती है, प्रतिदिन पूजा और मिष्ठान भोग लगता है। पुंगलपाडा राजू लोहिया गोपी किशन लोहिया के घर रहती है। इसके 2 दिन बाद भोलावणी होती है। इसके बाद पीहर राखी हाउस लौट आती हैं। शिव पुराण में भी गणगौर की जिक्र है और छत्तीस कौम में इसकी पूजा होती है।
आयोजन समिति के सेक्रेटरी प्रेम प्रकाश जालानी ने बताया कि राखी हाउस से रवाना होकर पुंगलपाड़ा, कबुतरा का चौक, जालोरी गेट, खांडा फलसा, सर्राफा बाजार, मिर्ची बाजार, कटला बाजार होते हुए घंटाघर जाएगा। घंटाघर में माता को विश्राम करवाया जाएगा। घंटाघर से लखारा बाजार होते हुए राखी हाउस लाया जाएगा।
राखी हाउस की इस गणगौर को सजने संवारने के लिए करीब 2 किलो सोना पहनाया जाता है। जिसकी कीमत 1 करोड़ से अधिक है। गणगौर का यह सोने के आभूषण गणगौर के नाम के ही है और कमेटी द्वारा खुलवाया हुए बैंक अकाउंट में ही माता के नाम से लॉकर में सुरक्षित रखवाया जाता है।
गणगौर के गहने में सिर पर मुकुट, बोर, रखड़ी, नाक में नथ, कानों के झुमके, गले में तीन टीक, इसके साथ तीन चंद्रहार पहनाए जाते है। हाथों में हथफुल, पैरों में पायल व कड़े, चूड़ी कंगन, पाटले व गोखरु , भुजबंद व बाजूबंद पहनाए जाते है । अगुठीयां व हाथ में गोल्ड का ही अर्धचंद्र रहता है। सिर का मुकुट हर वर्ष अलग-अलग डिजाइन में बनता है।
पालकी गोल्ड प्लेटेड
गवर माता की पालकी को भी आयोजक समिति ने गोल्ड प्लेटेड बनाया है। गणगौर की सवारी जिस पालकी में निकाली जाती है उसे सोने की परत चढ़ाई गई है। कमेटी के संयोजक के अनुसार इस पालकी पर 40 हजार रुपए गोल्ड प्लेटेड के लिए खर्च किए गए है। सिल्वर कलर की पालकी को इस वर्ष गोल्ड प्लेटेड किया गया है। पालकी की कीमत 60 हजार के करीब है।
भीम सा के इसी घर से रवाना होकर गवर माता की सवारी घंटाघर तक जाती है।
भीम सा के इसी घर से रवाना होकर गवर माता की सवारी घंटाघर तक जाती है।
प्रतिमा खुदाई में मिली
कमेटी के संयोजक भीम सा ने बताया कि यह प्रतिमा प्राकट्य है। यह खुदाई में प्राप्त हुई थी और इसका रंग रोगन करवाने के बाद इसका रूप निखर आया। उन्होंने बताया कि शहर में चार प्रतिमाएं खुदाई में प्राप्त हुई थी और मान्यता है कि यह चारों बहनें हैं। राखी हाउस के अलावा अन्य प्रतिमा खांडा फलसा, आडा बजार भैर जी मिष्ठान, व एक पुंगलपाडा में है।
गणगौर कमेटी एक माह पहले तैयारियां शुरु हो जाती है। मेले के आयोजन के लिए खर्च का चंदा कलेक्ट करने से लेकर अन्य तैयारियों पर देर रात तक आयोजन समिति के पदाधिकारी चर्चा करते हैं। गणगौर के श्रृंगार के लिए भी एक माह पहले से तैयारियां शुरू हो जाती है। किस कलर की ड्रेस होगी। गहने के अलावा प्रतिमा के मुकुट किस डिजाइन में तैयार होगा उसकी भी चर्चा होती है। मेले में बैंड से लेकर झांकियों व प्रसादी आदि की तैयारी की जाती है। 72 वर्ष से कमेटी इस मेले का आयोजन कर रही है। वर्तमान में राजकुमार व्यास इस कमेटी के अध्यक्ष हैं और प्रेम प्रकाश जालानी सेक्रेटरी हैं। उपाध्यक्ष के पद पर विजय व्यास, संयोजक भीम सा व संचालन मदन मोहन भैया है