Kota कोचिंग सिटी (Coaching City) बनता जा रहा ‘सुसाइड सिटी’!
- फिर कोचिंग स्टूडेंट ने हारी जिंदगी की रेस
- कोचिंग सिटी बनता जा रहा ‘सुसाइड सिटी’!
- कोचिंग स्टूडेंट्स क्या करें और क्या ना करें ?
- बच्चों के मेंटल स्टेट्स को समझना बेहद जरूरी
- जान है तो जहान है, ये समझना और समझाना होगा
- कोटा, कोचिंग और कॉम्पिटीशन की रेस
- कोचिंग संस्थान चाहे तो रोक सकते हैं खुदकुशी के केसेज
- मां-बाप को भी बच्चों की मेंटल कंडिशन को समझना होगा
ब्यूरो रिपोर्ट, लोकल पत्रकार। आज हर इंसान अपने फ्यूचर को लेकर टेंशन में है। हर शख्स जिंदगी में कुछ ना कुछ करना और बनना चाहता है। फिर चाहे वो ग्रेजुएट पास हो या फिर 10वीं पास। हर फील्ड में बढ़ते कॉम्पिटीशन को देखते हुए हर स्टूडेंट्स खुद को इस रेस में तैयार रखना चाहता है या फिर यूं कहें कि सबसे आगे रखना चाहता है। यही वजह है कि देश के कौने कौने से स्टूडेंट्स नीट और जेईई की तैयारी के लिए राजस्थान आते हैं। क्योंकि उनके हौसलों को उड़ान मिलती है उस शहर में जिसका नाम है कोटा। कोचिंग हब और शिक्षा नगरी के नाम से मशहूर कोटा की अब एक और पहचान बन चुकी है। वो है सुसाइड सिटी। वैसे तो ये पहचान नहीं.. बल्कि वो बदनुमा दाग है जो पिछले कई सालों से कोटा पर लगा हुआ है। जिसे कई मर्तबा हटाने की कोशिश भी की गई। लेकिन चाहकर भी हटाया ना जा सका।
Kota Coaching City पर बदनुमा दाग ?
कोटा में हर साल लाखों स्टूडेंट्स नीट और जेईई की तैयारी के लिए आते हैं। आगे बढ़ने की रेस में कुछ छात्र पास हो जाते हैं तो कुछ छात्र फेल हो जाते हैं। अबतक कोटा में सैंकड़ों स्टूडेंट्स मौत को गले लगा चुके हैं। सूत्रों की माने तो कोविड के बाद से अबतक करीब 59 स्टूडेंट्स की जान जा चुकी है और ये आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। महज इस साल की बात करें तो अबतक करीब 14 स्टूडेंट्स खुदकुशी कर चुके हैं। ताजा मामला है कोटा के ओल्ड राजीव गांधी नगर का। जहां के एक होस्टल से 18 साल के विवेक ने मौत की छलांग लगा दी। पहले उसने होस्टल के नेट की जाली काटी। फिर रात करीब 3 बजे छठी मंजिल से कूद गया। मृतक छात्र मध्यप्रदेश का रहने वाला था। पिछले साल यानि की 2023 में 29 बच्चों की मौत के सामने आए थे।
क्यों सुसाइड कर रहे छात्र ?
वैसे तो हर स्टूडेंट के जिंदगी की जंग हारने के पीछे अलग-अलग कारण होते हैं। लेकिन कोटा में सुसाइड के पीछे के कारणों में सबसे ज्यादा कॉमन है। उम्मीदों के मुताबिक रिजल्ट ना आना। वो उम्मीदें बच्चे की भी हो सकती है। वो उम्मीद उनके माता-पिता की भी हो सकती है। हम आपको कुछ प्वाइंट्स के जरिए बताते हैं।
1. बढ़ता कॉम्पिटीशन
2. पढ़ाई का तनाव
3. कोचिंग सेंटर्स के बीच रेस
4. हॉस्टल और पीजी का माहौल
5. ग्रुप स्टडी का प्रेशर
6. औसत बच्चों की अनदेखी
7. छुट्टियों की कमी और कम ब्रेक्स
8. घरवालों का दबाव
9. घरवालों से बच्चे की दूरी
10. पुलिस प्रशासन की लापरवाही
मनोवैज्ञानिकों की माने तो बच्चों का रेस से बाहर होना, उनका डिमोटिवेट होना और ड्रिपेशन में जाने का सबसे बड़ा कारण है। बच्चों का शिड्यूल। बच्चों को समय समय पर मोटिवेट करते रहना चाहिए। फिर चाहे वो कोचिंग संस्थान करें, पेरेंट्स करें या फिर प्रशासन। साथ ही बच्चों को स्टडी के साथ साथ उनको जिंदगी की अहमियत के बारे में भी बताना चाहिए। उनके होने और ना होने का फर्क बताना चाहिए। हर बच्चे का मेंटल लेवल अलग अलग होता है। औसत बच्चों की मेंटल कंडिशन को समझना चाहिए। इन सभी चीजों को ध्यान में रखते हुए ही हम जिंदगी की जंग हार रहे मासूमों को जिंदगी में जीतना सीखा सकते हैं।
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