Shri Krishna Geeta:
यम यम वापि स्मरण भावं त्यजत्यंते कलेवरं
तम तम् एवैति कौन्तेय सदा तद-भाव-भावित:’
Shri Krishna Geeta: इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण समझा रहे हैं कि मनुष्य के अगले जन्म का निर्धारण कैसे होता है। वे कहते हैं कि मरणासन्न अवस्था में मनुष्य के मन में जो भी मुख्य विचार पनप रहे होते हैं, वे ही उसका अगला जन्म निर्धारित करते हैं, परन्तु ये भी सत्य है कि ईश्वर-प्राप्ति मात्र मृत्यु के समय ईश्वर के स्मरण से नहीं होगी। यद्यपि मृत्यु के समय भगवान को अवश्य याद करना चाहिए। उसके लिए हमारी आतंरिक प्रकृति का भी वैसा ही होना जरूरी है। यहां आतंरिक स्वभाव से तात्पर्य हमारे मन और बुद्धि की चेतना से है। मनुष्य का स्वभाव भी मन के अंदर चल रहे चिंतन के हिस्से के रूप में प्रकट होता रहता है। इसीलिए मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक पल में परम पिता का स्मरण रखना चाहिए और तभी मनुष्य जाति ईश्वर-चेतन आतंरिक स्वाभाव विकसित कर पाएंगे। तो चलिए अच्छे से समझते हैं इसे एक कहानी के माध्यम से..
Shri Krishna Geeta: पौराणिक कथाओं में एक कथा राजा भरत की आती है। राजा भरत बहुत प्रतापी थे। भगवत- प्राप्ति के लिए उन्होंने राज-काज छोड़ दिया और जंगल चले गये। यहां वे एक तपस्वी की तरह जीने लगे। एक समय जब वो ध्यान कर रहे थे, तब उन्होंने एक हिरणी को पास ही बहने वाली नदी में छलांग लगाते देखा। वो हिरणी गर्भवती थी और बाघ से बचने के लिए नदी में कूद गई थी। हिरणी बहुत डरी हुई थी और ऐसे में बहते पानी में ही उसने बच्चे को जन्म दे दिया, लेकिन अपने बच्चे को नदी में वो बचा नहीं पा रही थी और हार कर वह दूसरे किनारे चली गई। तपस्वी भरत को उस पर दया आ गई और उन्होंने उस हिरणी के बच्चे को बचा लिया। फिर उसे अपनी झोंपड़ी में ले गये। अब वे उस बच्चे को बड़े लाड-प्यार से पालने लगे। उसके लिए घास इकट्ठी करते। उसे खिलाते। उसे गले लगाकर गर्म रखते। उसकी अठखेलियां देखकर वे बहुत खुश होते थे। इस तरह वे हिरण के बच्चे में पूरी तरह रम गये और ईश्वर से दूर हो गये। जब भरत का अंत समय आया, तब भी वो केवल उस बच्चे के बारे में ही सोच रहे थे और प्रेम से उसे याद कर रहे थे। इसका परिणाम ये हुआ कि उन्हें अगले जन्म में हिरण बनना पड़ा। फिर भी, Shri Krishna Geeta: अपने पिछले जन्मों की आध्यात्मिक साधना के कारण, हिरण के शरीर में भी, उन्हें अपने पिछले जीवन में की गई गलतियों का एहसास था। इसलिए एक हिरण के रूप में भी, भरत ने अपना पूरा जीवन जंगल में संतों के पवित्र आश्रमों के पास बिताया और जब उनकी मृत्यु हुई, तो उन्हें फिर से मानव जन्म दिया गया। इस बार भरत ने मौका नहीं गंवाया और अपनी साधना पूरी की। अंततः, उन्हें ईश्वर-प्राप्ति हुई और उन्हें महान ऋषि जड़भरत के नाम से जाना जाने लगा।