‘सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।’
भगवान पर विश्वास रखने से मनुष्य क्या कुछ पा सकता है, आज उसकी बानगी एक कहानी के जरिये जानेंगे।
एक समय की बात है। एक बहुत गरीब महिला थी, लेकिन ईश्वरीय शक्ति में गहरी आस्था थी। एक बार ऐसा हुआ कि परिवार में किसी के लिए भी खाने को कुछ नहीं बचा। कई दिन हो गये, लेकिन किसी सदस्य को ना कोई काम मिल पाया और ना ही खाने का कोई प्रबंध हो पाया। एक दिन उसे रेडियो नाम की सुविधा के बारे में पता चला और किसी तरह उसने रेडियो जॉकी के माध्यम से ईश्वर को संदेश भेजने के लिए मना लिया। अब जब उसका संदेश रेडियो पर प्रसारित हुआ, तो उसे एक बड़े उद्योगपति ने भी सुना।
ये उद्योगपति काफी घमंडी और अहंकारी तो था ही। साथ ही नास्तिक भी था। उसने सोचा कि इस महिला के साथ ऐसा मजाक करना चाहिए कि ईश्वर पर से उसकी श्रद्धा डगमगाने लगे। ऐसा सोचकर उसने अपने सेक्रेटरी से महीने भर का राशन और दो समय का खाना उस महिला के घर पहुँचाने के लिए कहा। साथ ही निर्देश दिया कि महिला जब पूछे कि ये सब किसने भेजा है, तो उसे कहें कि ‘शैतान’ ने भेजा है। सेक्रेटरी जब महिला के घर पहुँच गया और सामान दे दिया। पूरे परिवार ने पेट भर कर भोजन किया और राशन रसोई में रख दिया।
अब तक भी जब सेक्रेटरी से खाने के बारे में किसी ने नहीं पूछा, तो वो खुद ही बोल पड़ा कि, क्या आप लोग जानना नहीं चाहेंगे कि ये मदद किसने भिजवाई है? इसके बाद उस महिला ने जो जवाब दिया उसे सुनकर सेक्रेटरी भौंचक्का रह गया। महिला बोली, ‘ मैं इतना क्यों सोचूं या पूछूँ? मेरे भगवान पर मुझे इतना भरोसा है कि उनके आदेश पर शैतानों को भी भागना पड़ता है। सेक्रेटरी का मुँह खुला का खुला रह गया और वो बिना कूछ कहे वहां से लौट आया। गीता परम रहस्यम में भी भगवान कहते हैं कि सब छोड़कर मेरी शरण में आ जा। मैं सब ठीक कर दूंगा।