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Dharma Aastha: यहां हुआ था भगवान शिव माता पार्वती का विवाह, आज भी साक्षी अग्निकुण्ड है मौजूद
सनातन धर्म को लेकर भले ही अन्य धर्म के लोग कई बातें बनाते हो..इसे झूठलाते हो, लेकिन सनातन किसी एक किताबी ज्ञान से ही आगे नहीं बढ़ा या जाना जाता, बल्कि सनातन सत्यता पर आधारित है। इसके कई सबूत हैं। जैसे भगवान शिव माता पर्वती का विवाह जहां हुआ वो जगह आज भी मौजूद है। जिसे त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है। त्रियुगीनारायण मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लाक में है। मान्यता है कि देवी पार्वती से भगवान शिव का विवाह इसी स्थान पर संपन्न हुआ था। भगवान नारायण ने इस दिव्य विवाह में देवी पार्वती के भाई का कर्तव्य निभाया। जबकि ब्रह्मा इस विवाहयज्ञ के आचार्य बने। यही वजह है कि यहां जल रही अखंड धूनी के सात फेरे लेने के लिए हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में युवा जोड़े त्रियुगीनारायण पहुंचते हैं।
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त्रेतायुग से स्थापित है मंदिर
भगवान शिव और माता पर्वती के विवाह वाला यह पवित्र स्थान समुद्रतल से 6495 फीट की ऊंचाई पर है।केदारघाटी में स्थित सीमांत ग्राम पंचायत का त्रियुगीनारायण नाम इसी मंदिर के कारण पड़ा। 295 परिवारों वाली इस पंचायत में त्रियुगीनारायण मंदिर की स्थापना त्रेतायुग में हुई मानी जाती है। स्थापत्य शैली में केदारनाथ मंदिर जैसे दिखने वाले इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है यहां जल रही अखंड ज्योति। मान्यता है कि यह लौ शिव-पार्वती के दिव्य विवाह के समय से प्रज्वलित है। इसलिए इसे अखंड धूनी मंदिर भी कहा जाता है।
इस अग्निकुण्ड को साक्षी मानकर आज भी करते हैं विवाह
त्रियुगीनारायण में आज भी जल रही इस अग्निकुण्ड को साक्षी मानकर देश विदेश से युवा जोड़ा यहां शादी करने आता है। इस मंदिर में भगवान नारायण भूदेवी व देवी लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। यहां जल रही अखंड धूनी के सात फेरे लेने के लिए हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में युवा जोड़े त्रियुगीनारायण पहुंचते हैं। साल-दर-साल यह संख्या बढ़ती ही जा रही है।
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प्रकृति की गोद में संस्कृति का समागम
चारों ओर पहाड़ों से घिरा त्रियुगीनारायण गांव आपको प्रकृति की गोद में होने का एहसास कराता है। आप सर्दी का मौसम शादी के लिए चुनते हैं तो बर्फ की मनमोहक फुहारें भी आपका स्वागत कर सकती हैं।
शादी में गढ़वाली मांगल गीतों के साथ लोक वाद्य ढोल-दमाऊ और मसकबीन की सुमधुर लहरियां आपको पहाड़ी संस्कृति के और करीब ले जाती हैं। अगर आप चाहें तो शादी में पारंपरिक गढ़वाली व्यंजन परोसने का अनुरोध भी कर सकते हैं। मंदिर में सात कुंड हैं, जिन्हें ब्रह्मकुंड, रुद्रकुंड, विष्णु कुंड, सूरज कुंड, सरस्वती कुंड, नारद कुंड व अमृत कुंड नाम से जाना जाता है। ऋषिकेश से 175 किमी की दूरी पर त्रियुगीनारायण से आसपास गौरीकुंड, सोनप्रयाग, ऊखीमठ व कालीमठ जैसे दर्शनीय स्थल मौजूद हैं। ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर भगवान केदारनाथ का शीतकालीन प्रवास स्थल भी है। यहां आप पांचों केदार (केदारनाथ, मध्यमेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ व कल्पेश्वर) के दर्शन कर सकते हैं।
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