रणसी गांव की भूत बावड़ी का किस्सा
मारवाड़ में हमेशा से ही पानी एक विकराल समस्या रही है। इससे बचने के लिए यहां के शासकों और रहवासियों ने पानी के भंडारण के लिए कई कुंए ( Wells ) , बावडि़यां ( Step wells ) , हौद और टांके ( Water Reservoir ) बनवाए थे। ज्यादातर बावडि़यां राजा-महाराजा, रानियों या पासवानों ने बनवाई थीं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जोधपुर के रणसी गांव में एक बावड़ी एेसी भी है, जिसे खुद भूत ने बनाया है!
जी हां, ये बिल्कुल सच है। जोधपुर से करीब 105 किलोमीटर दूर बोरूंदा थाना क्षेत्र में एक एेतिहासिक गांव है रणसी गांव… यहीं मौजूद है ये भूत बावड़ी ( ghost made step well) । ये बावड़ी कलात्मकता का एक बेजोड़ नमूना है। करीब 200 फीट गहरी बावड़ी में नीचे जाने के लिए चारों ओर सीढि़यां बनी हैं और नक्काशी किए हुए कई खम्भे भी बने हैं, जो इसकी सुंदरता को निखारते हैं। बावड़ी के निर्माण में लॉक तकनीक पत्थरों को जोड़ा गया है, जो झूलते हुए दिखाई देते हैं।
इतिहास में इस बात का प्रमाण मिलता है कि जोधपुर से चाम्पावत राजपूतों की एक शाखा विभाजित हो गई थी, जो कापरड़ा गांव में आकर बस गए। कुंवारे राजपूतों ने इस गांव के एक संत की तपस्या को बाधित किया। उनके कुपित होने पर राजपूत युवाओं ने संत की बगीची भी उजाड़ दी। इससे संत ने क्रोधित हो कर पूरे चाम्पावत राजपूतों को शाप दिया। चाम्पावतों को शाप मिला कि कापरड़ा गांव में उनके वंशज जीवित नहीं रहेंगे। इस शाप के भय से चाम्पावत राजपूतों ने कापरड़ा गांव छोड़ दिया और एक दूसरी जगह जाकर बस गए। इस गांव को उन्होंने रणसी नाम दिया। इस तरह रणसी गांव अस्तित्व में आया। हालांकि ये रणसी गांव अब भूत द्वारा बनाई गई बावड़ी और महल के लिए ज्यादा प्रसिद्ध है। लोग दूर-दूर से इस गांव में बनी भूत बावड़ी और महल देखने आते हैं।
जोधपुर दरबार के मालदेव सिंह के यहां रणसी गांव के ठाकुर जयसिंह चाम्पावत ठकुराई का काम देखते थे। एक दिन ठाकुर गणगौर मेले में जोधपुर के राजा के किसी काम के लिए जा रहे थे। रास्ते में चिडाणी गांव स्थित लत्याळी नाडी में वे अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए रुके। उस समय रात काफी हो चुकी थी। ठाकुर का घोड़ा जब पानी पी रहा था, तभी ठाकुर को वहां एक झाड़ी के पीछे कुछ हलचल महसूस हुई। गौर से देखने पर ठाकुर को वह कोई भूतहा आकृति मालूम हुई। ठाकुर के बड़ी निर्भीकता से बोलने पर भूत उनके सामने प्रकट हुआ और बोला कि मैं एक शाप से बंधा हूं और इस नाडी का पानी नहीं पी सकता, आप मुझे पानी पिला दीजिए। पानी पीने के बाद उस भूत ने ठाकुर जयसिंह से कुछ खाने की सामग्री भी मांगी, जिसे लेने के बाद भूत ने ठाकुर से कुश्ती लडऩे की इच्छा जाहिर की।
ठाकुर ने उसकी इच्छा सहर्ष स्वीकार कर ली। दोनों में कुश्ती हुई और ठाकुर जीत गया। जयसिंह ने भूत को अपने वश में कर लिया। भूत त्राहि-त्राहि करने लगा और उसने कहा कि आप मुझे जानें दें, बदले में जो आप कहेंगे, मैं करूंगा। ठाकुर ने अपने रणसी गांव में भूत को लोगों के लिए बावड़ी और अपने लिए सात खंडों (मंजिलों) का महल बनाने के निर्देश दिए। भूत ने इस काम के लिए हामी भर दी, लेकिन उसने एक शर्त रखी कि ये बात किसी को पता ना चले। साथ ही उसने ये भी कहा कि वो ये काम परोक्ष रूप से करेगा, जिसमें ठाकुर जो भी निर्माण कराएंगे, रात में भूत उसे 100 गुना अधिक बढ़ा देगा। ये राज यदि खुलेगा, तो ठाकुर का काम भी रुक जाएगा और उसके बाद भूत उसे पूरा नहीं कर पाएगा। ये बात विक्रम संवत् 1600 की है, जब रणसी गांव में अनोखा निर्माण कार्य शुरू हुआ। निर्माण करने वाले मजदूर भी हैरान थे कि दिन में वो जो भी निर्माण कार्य करते, अगले दिन वो कई गुना ज्यादा हो जाता था। गांव के लोग भी इस चमत्कार को देखने आने लगे।
बावड़ी और महल बनाने का कार्य प्रगति पर था। एक दिन ठाकुर जयसिंह की पत्नी ने इस अनोखे कार्य के विस्तार के बारे में पूछा। वचनबद्ध ठाकुर ने बताने से मना कर दिया। इससे नाराज ठकुराइन ने पति से बोलचाल बंद कर दी और खाना-पीना त्याग दिया। ठाकुर ने निर्माण बंद होने के डर से ठकुराइन को कुछ नहीं बताया, लेकिन दिन-प्रतिदिन ठकुराइन की तबीयत बिगड़ती गई और वो मृत्यु शैय्या पर पहुंच गई। इसे देखकर ठाकुर को अपनी जिद छोडऩी पड़ी और उसने ठकुराइन को सब कुछ बता दिया। जैसे ही ये राज खुला महल और बावड़ी का कार्य बंद हो गया। जो महल सात खंडों का बनना था, वो मात्र दो खंडों का बन कर रह गया। बावड़ी करीब-करीब पूरी बन चुकी थी, लेकिन उसकी एक दीवार अधूरी रह गई। राज खुलने के बाद ये दीवार भी नहीं बन पाई। रणसी गांव में भूत की बनाई बावड़ी और महल आज भी उसी अधूरी हालत में मौजूद हैं।