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श्राप है या वरदान.. क्या राज़ है… जो अंधेरे में भी चमकता है ये जंगल!
भौगोलिक, धर्मिक, सामाजिक और पर्यावरण विभिन्नता के अलावा भी भारत में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो इसे एक उप महाद्वीप बनाती हैं। हमारे भारत देश में ऐसे कई स्थान हैं, जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है और एक अलग विशेषता इसे अन्य से विशेष बनाती है । ऐसी ही एक जगह है महाराष्ट्र का भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य। यहाँ वन्य जीवों के साथ प्रकृति का अनोखा सौंदर्य है। इसकी एक खास बात यह है कि पूरा जंगल रात को चमकता है। विशेषतौर पर मानसून की बारिश में अभयारण्य का अनूठा रंग देखने को मिलता है। मानसून के दौरान हुई बारिश और बारिश की बूंदें चमकती हुई दिखाई देतीं हैं। इसकी वजह से भीमाशंकर अभयारण्य पूरा चमकता हुआ दिखाई देता है।
जुगनुओं से नहीं बल्कि पौधे से आती है रोशनी
पश्चिमी घाट पर स्थित महाराष्ट्र का भीमाशंकर वाइल्डलाइफ रिजर्व अपनी एक अलग विशेषता की लिए प्रसिद्ध है। ये जंगल रात में विशेषत: बारिश में चमकता है। दिन में इस जंगल की प्राकृतिक सुन्दरता पर्यटकों को आकर्षित करती है। लेकिन जैसे ही रात का अंधेरा छाता है, वैसे ही महाराष्ट्र का भीमाशंकर वाइल्डलाइफ रिजर्व एक रौशनी में जगमगा उठता है। रात के अंधेरे में यहाँ जुगनुओं की रोशनी ही नहीं होती, बल्कि पौधे भी चमक उठते हैं।
यह संभवतः भारत का एकमात्र जंगल है, जो रात के अंधेरे में चमक उठता है। खासतौर पर मानसून की बारिश शुरू होने के साथ इस जंगल की चमक कई गुना बढ़ जाती है। यहाँ मानसून के दौरान पूरा जंगल रौशनी से रोशन दिखाई देता है। अगर उंचाई और
सैटेलाइट से देखा जाए तो पूरा जंगल रोशनी में नहाया नजर आता है। लगता है जैसे यहां दिन का उजाला हो।
भीमाशंकर वन्यजीव अभ्यारण्य महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट के 131 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से ये जगह 100 किमी पूर्व में स्थित है। इस रिज़र्व में नौ आदिवासी गाँव शामिल हैं। इस अभ्यारण्य को भारतीय विशाल गिलहरी की लुप्तप्राय प्रजाति और इस जंगल में रहने वाली कुछ लुप्तप्राय सरीसृप प्रजातियों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था। यह जंगल बायोलुमिनसेंस नामक एक दुर्लभ लेकिन आश्चर्यजनक घटना का घर है। सूर्यास्त के समय जंगल में अंधेरा छा जाने के बाद, पेड़ों की छालें चमकने लगती हैं। आइए अब जानते हैं कि ये जंगल आखिर कैसे चमकता है?
चमक के पीछे का रहस्य
जंगल में सड़ती लकड़ियों पर ये रौशनी देखी जाती है। इसी रौशनी से जंगल चमकता दिखाई देता है। ऐसा बायोलुमिनसेंस नामक घटना के कारण होता है। बायोलुमिनसेंस एक रासायनिक प्रक्रिया है, जो लगभग जुगनू की तरह ही प्रकाश पैदा करती है। यह माइसेना जीनस से संबंधित कवक के कारण होता है, जिसमें सूक्ष्म मशरूम होते हैं जो काई के समान होते हैं। यह कवक लूसिफ़ेरेज़ नामक एंजाइम का उत्पादन करता है। लूसिफ़ेरिन नामक रसायन, जो सड़ती हुई लकड़ी पर पाया जाने वाला प्रकाश उत्सर्जक यौगिक है और लूसिफ़ेरेज़ एंजाइम के बीच एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, जो बायोल्यूमिनसेंस की ओर ले जाती है। इसके कारण, पेड़ एक ज्वलंत, फ्लोरोसेंट हरी चमक बिखेरते हैं। हालाँकि यह घटना अन्य समशीतोष्ण-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है, यह पश्चिमी घाट के बड़े हिस्सों में देखी जाती है। परिणामस्वरूप, पश्चिमी घाट के 39 क्षेत्रों को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है, जिन्हें देखभाल के साथ संरक्षित किया जाना चाहिए।
हमेशा नहीं चमकता जंगल
मानसून के मौसम में जब पूरा जंगल बारिश से भीग जाता है और सब कुछ हरा-भरा होता है, यही वह समय होता है जब यह जंगल वास्तव में चमकता है। फफूंद जीनस माइसेना को आमतौर पर अपनी वृद्धि के लिए सड़ने वाली छालों, पत्तियों और पेड़ की जड़ों की आवश्यकता होती है। इस तरह की सड़ने वाली सामग्री मानसून के नमी वाले मौसम में एक आम दृश्य है। इस प्रकार, मानसून वह समय है जब जंगल अपनी दिव्य चमक सबसे अधिक प्रदर्शित करते हैं। हालांकि ये पूरी तरह आपके भाग्य पर निर्भर करता है कि आप ये नजारा देख पाएं। क्योंकि मानसून के मौसम में भी गिनी-चुनी रातों को ही ऐसी मनमोहक तस्वीर देखने को मिलती है।
बायोलुमिनसेंस का इतिहास
जी हां, इतिहास। इन चमकते जंगलों का भी एक इतिहास है। प्रसिद्ध रोमन प्रकृतिवादी प्लिनी द एल्डर ने पहली शताब्दी में यूरोप में इस घटना का सबसे पहला उल्लेख किया था। ऐसा माना जाता है कि कुछ स्कैंडिनेवियाई जनजातियाँ घने जंगलों में यात्रा करते समय अपने रास्ते को चिह्नित करने के लिए चमकती लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग करती थीं। हैना दिलचस्प.. तो अब उठाइये अपना बैग और शुरु करिये पैकिंग.. मानसून आने ही वाला है। क्या पता आप हों लकी और देख पाएं जंगल जो चमकता है।
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