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यहां दी जाती थी तंत्रिक शिक्षा, इसे ही देखकर बनाया संसद भवन

by PP Singh
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तंत्रिक शिक्षा

यहां दी जाती थी तंत्रिक शिक्षा, इसे ही देखकर बनाया संसद भवन

आपने नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में बहुत कुछ सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी तांत्रिक विश्वविद्यालय के बारे में सुना है ?… नहीं तो आज हम आपको इसी की जानकारी देने वाले हैं। एमपी के मुरैना जिले से करीब 35 किलोमीटर दूर है चौंसठ योगिनी मंदिर। अगर आप मंदिर में पहुंचते हैं तो आप खुद इसकी डिजाइन देखकर समझ जाऐंगे की यह कोई मामूली मंदिर नहीं हो सकता। जमीन से 100 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर का निर्माण करीब 1000 साल पहले हुआ था। ये मंदिर गोलाकार है और इसमें 64 कमरे हैं जिनमें से हर कमरे में एक शिवलिंग स्थापित है और हर शिवलिंग के पास देवी योगिनी की प्रतिमाएं स्थित हैं इसलिए इसे चौंसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। इसे इकन्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यही नहीं इसका डिजाइन इतना प्रभावित करने वाला है कि भारत के संसद भवन को इसकी प्रतिकृति माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पूर्व में कभी यहां तंत्र शिक्षा दी जाती थी, देश दुनिया से यहां तंत्र की साधना करने लोग आया करते थे। और यहां मौजूद योगिनियों को बस में करने की शिक्षा प्राप्त किया करते थे। यही वजह है कि इस तांत्रिकों की यूनिवर्सिटी कहा जाता है।

1323 ई. में हुआ था निर्माण

गोलाकर डिजाइन और अनोखे दिखने वाले इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने 1323 ईस्वी में कराया था। मंदिर का निर्माण वृत्तीय क्षेत्र में किया गया है और इसमें 64 कमरे हैं। हर कमरे में एक शिवलिंग स्थापित किया गया था और शिवलिंग के पास देवी योगिनी की प्रतिमाएं भी स्थापित थीं। लेकिन देखरेख के अभाव में अब कई कमरों में रखे शिवलिंग और मूर्तियां या तो चोरी हो चुके हैं या फिर उन्हें खंडित कर दिया गया है। अद्भुत शिल्पकला का नमूना ये मंदिर 100 से ज्यादा खंभों पर टिका हुआ है। बताया जाता है कि एक साथ 64 शिवलिंग और एक मुख्य गर्भगृह वाला यह मंदिर अनोखा है। इसीलिए यहां तांत्रिक विद्या में विश्वास रखने वाले लोग सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना करते हैं। दशहरा, दीपावली सहित अन्य विशेष दिनों पर यहां तंत्र साधना की जाती है।

इसी मंदिर की प्रतिकृति है संसद भवन

भारत में आऐ विदेशी इस मंदिर से खास प्रभावित थे, यही वजह थी कि साल 1920 में बना भारत का संसद भवन मितावली के चौसठ योगिनी माता मंदिर को ध्यान में रखकर ही बनवाया गया था। दोनों की बनावट बिलकुल एक जैसी नजर आती है। आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित मितावली का गुप्तकालीन शिव मंदिर वैसे तो काफी अद्भुत है, लेकिन ठीक ढंग से रखरखाव न होने और सरकारों व जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते ये मंदिर अब गुमनाम होता जा रहा है। नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है। वैसे ही मितावली के चौसठ योगिनी माता मंदिर भी अपनी ऐतिहासिक महत्ता रखताहै। जिसे सुरक्षित रखने की जरूरत है।

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