Home राजनीतिलोकसभा चुनाव Lok Sabha Chunav: राजस्थान की 9 सीटों के रिजल्ट ने सबकों चौंकाया, कई दिग्गजों की जमानत हुई जब्त

Lok Sabha Chunav: राजस्थान की 9 सीटों के रिजल्ट ने सबकों चौंकाया, कई दिग्गजों की जमानत हुई जब्त

by PP Singh
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Lok Sabha Chunav

Lok Sabha Chunav: लोकसभा चुनाव के नतीजे तो वैसे पूरे देश के लिए चौंकाने वाले थे। लेकिन सिर्फ राजस्थान की बात करें तो यहां 9 सीटों पर आए रिजल्ट ने एकबार फिर सबकों चौंका दिया। 4 केंद्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी और हार के साथ वो तीसरे नंबर पर रहे। जीत के लिए वो मोदी लहर के भरोसे रहे, यही उनकी हार का मुख्य कारण रहा। मोदी कैबिनेट में रहे दो दिग्गज अर्जुनराम मेघवाल और गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव तो जीत गए लेकिन कोई बड़ा मार्जिन हासिल नहीं कर पाए। कोटा की चर्चित सीट पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को हराया। लेकिन इस सीट पर भी कांटे का मुकाबला रहा। राजस्थान की 25 सीटों में 9 हॉट सीटों का मुकाबला सभी को चौकाने वाला रहा और जनता ने अपना जनादेश सुना दिया।

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बाड़मेर सीट से कैलाश चौधरी की हार

केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की हार से सीमावर्ती इलाके में बीजेपी को करारा झटका लगा है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कैलाश चौधरी की हार का सबसे बड़ा कारण शुरुआत में उनका अति आत्मविश्वास और पांच साल में ग्राउंड कनेक्शन खो देना था। बीजेपी की स्थानीय राजनीति में भी गुटबाजी बढ़ी। ग्राउंड कनेक्टिविटी से लेकर मोदी लहर के भरोसे रहना उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के उभार ने सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को पहुंचाया। वहीं मंत्रियों की बयान बाजी के चलते जाट, एससी, मुसलमान वोट कांग्रेस की तरफ चले गए।

जोधपुर सीट से गजेंद्र शेखावत की हैट्रिक

बेशक केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर की हॉट सीट से जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे। कांग्रेस से करण सिंह उचियारड़ा को हार का स्वाद चखना पड़ा। गजेंद्र सिंह ने चुनावों में ग्राउंड पर उतरकर मेहनत की। कमजोर इलाकों में खुद रात-दिन जुटकर चुनाव प्रचार किया। ओवर कॉन्फिडेंस में नहीं रहे। बीजेपी के नाराज चल रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाकर साथ लाए। वसुंधरा राजे समर्थक विधायक बाबू सिंह राठौड़ से मतभेद के बाद सुलह की जिसका फायदा उन्हे मिला।

जालोर सीट पर काम नहीं आया ‘वैभव’

पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत लगातार दूसरा लोकसभा चुनाव हार गए। बीजेपी के पूर्व प्रधान लुंबाराम चौधरी से वैभव गहलोत को हराया। हालांकि वैभव गहलोत ने चुनावी माहौल बनाने में कसर नहीं रखी, अशोक गहलोत समेत सभी वरिष्ठ नेताओं ने यहां प्रचार किया। वैभव गहलोत की हार का सबसे बड़ा कारण उनका ग्राउंड कनेक्ट नहीं होना माना जा रहा है। बीजेपी के लुंबाराम चौधरी को उनकी स्थानीय छवि का फायदा मिला। वैभव गहलोत को क्षेत्र में भितरघात का भी सामना करना पड़ा।

चूरू सीट पर राहुल कस्वां का चौका

चूरू सीट से राहुल कस्वां का का टिकट काटना बीजेपी के लिए आत्मघाती साबित हुआ। बीजेपी उम्मीदवार देवेंद्र झाझड़िया नए चेहरे के बावजूद चुनावी हवा को अपनी तरफ नहीं मोड़ पाए। विधानसभा चुनाव के वक्त से बिगड़े जातीय समीकरणों को बीजेपी साध नहीं पाई। किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी का असर अब तक बरकरार है। बीजेपी को नहरी क्षेत्र से लेकर शेखावाटी के इलाके में विधानसभा चुनावों में भी नुकसान का सामना करना पड़ा। बीजेपी ने उस नुकसान को कम करने की जगह और बढ़ा दिया।

कोटा सीट पर भी रही कांटे की टक्कर

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला कड़े मुकाबले के बावजूद बीजेपी से कांग्रेस में गए प्रहलाद गुंजल को मात देने में कामयाब रहे। ओम बिरला की जीत के पीछे शहरी वोटर्स पर उनकी पकड़ भी बड़ा कारण रही। लोकसभा स्पीकर रहने के बावजूद भी उन्होने कई मर्तबा कोटा-बूंदी का दौरा लगातार किया। हर मोर्चे पर वो अपने इलाके के लोगों से जुड़े रहे। तो वहीं बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रहलाद गुंजल को कांग्रेस के एक गुट ने स्वीकार नहीं किया।

अलवर सीट पर बीजेपी एक्सपेरिमेंट कामयाब

भूपेंद्र यादव ने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतने में भी कामयाब रहे। बाबा बालकनाथ को विधानसभा चुनाव लड़वाकर भूपेंद्र यादव को उनकी जगह लोकसभा लड़ाने की बीजेपी की रणनीति कामयाब रही। यादव वोटर्स का रुझान बीजेपी के पक्ष में रहना भी उनकी जीत का आधार बना। ग्राउंड लेवल पर बाबा बालकनाथ ने भूपेंद्र यादव का भरपूर साथ दिया। हर मोर्चे पर बाबा बालकनाथ खड़े नजर आए यही वजह है कि कांग्रेस के ललित यादव जातीय वोटर्स का ज्यादा समर्थन नहीं ले सके।

बीकानेर सीट पर ‘अर्जुन’ ने चक्रव्यूह को भेदा

बीकानेर में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल चौथी बार जीत हासिल करने में कामयाब हुए। कांग्रेस उम्मीदवार गोविंदराम मेघवाल अर्जुन की रणनीति के आगे बढ़त नहीं बना पाए। शहरी वोटर्स पर अर्जुन मेघवाल की पकड़ मजबूत रही। गोविंदराम मेघवाल शहरी वोटर्स का समर्थन नहीं जुटा पाए, कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान भी उनकी हार का बड़ा कारण बनी। अर्जुन मेघवाल की कोर वोटर्स पर पकड़ बरकरार रही, चुनावों में लगातार कमजोर इलाकों में फोकस किया, डैमेज कंट्रोल में कामयाब रहे।

नागौर सीट से बेनीवाल की नैया पार

नागौर में इस बार ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल पार्टी-गठबंधन बदलकर चुनाव लड़े। लेकिन नतीजा पिछली बार वाला ही रहा। ज्योति मिर्धा पार्टी बदलकर भी हार गईं तो बेनीवाल गठबंधन बदलकर जीत का परचम लहरा गए। ज्योति मिर्धा स्थानीय समीकरणों को नहीं साध पाईं। ग्राउंड कनेक्ट का अभाव और बीजेपी के कोर वोटर्स का समर्थन नहीं जुटा पाना हार का बड़ा फैक्टर रहा। राजपूत समाज की नाराजगी भी बीजेपी की हार का कारण बनी। जबकि बेनीवाल ने सांसद रहने के बावजूद भी ग्राउंड लेवल पर पकड़ मजबूत बनाए रखी।

बांसवाड़ा सीट पर ‘बाप’ की सटीक रणनीति

बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले महेंद्रजीत मालवीय को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल कर टिकट दिया। बावजूद इसके बीएपी के आदिवासी फैक्टर के सामने टिक नहीं पाए। महेंद्रजीत मालवीय ने लोकसभा लड़ने के लिए पार्टी और विधायक की सीट छोड़ी। लेकिन राजुकमार रोत और बीएपी के उभार के आगे वो सरेंडर हो गए। BAP की सटीक रणनीति के आगे बीजेपी का दांव नहीं चला…और आदिवासियों के मुद्दों को समझ नहीं पाने की वजह से रणनीतिक हार का सामना करना पड़ा। इस लोकसभा चुनाव ने बेशक बीजेपी को प्रदेश और देश के लेवल पर महामंथन का बड़ा सबक दिया है।

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