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गवरी नृत्य: ये डांस नहीं देखा तो क्या देखा?

by PP Singh
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गवरी नृत्य

गवरी नृत्य: ये डांस नहीं देखा तो क्या देखा?

ब्यूरो रिपोर्ट, लोकल पत्रकार: भक्ति में डूबे अपनी कला का प्रदर्शन करते ये आर्टिस्ट जितने यूनिक हैं। उतनी ही यूनिक है इनकी परफोर्मेंस और डांस फॉर्मेशन है। इनदिनों राजस्थान के मेवाड़ एरिया में आपको ये फोक डांस देखने को मिल जाएगा। सावन भादो माह में मेवाड़ की फेमस इस फोक डांस को खेला जाता है। जो भीलों का सबसे पोपुलर डांस है। नाम है गवरी नृत्य। ये डांस भीलों की पहचान है। गवरी का सिंपल मीनिंग अगर देखा जाए तो..गौरी यानि की माता पार्वती से होता है। इस फोक डांस को देखने के लिए दूर दराज के गांवों से भी बड़ी तादाद में लोग पहुंचते हैं। इस डांस की सबसे बड़ी स्पेशलिटी है कि गवरी खेलने वालों के ग्रुप में एक भी फीमेल आर्टिस्ट नहीं होती। मेल आर्टिस्ट ही फीमेल के कपड़े पहनते हैं। उनका जैसा गैटअप लेते हैं। गवरी करने वाले आर्टिस्ट बताते हैं कि गवरी को भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह माना जाता है।

गवरी खेलने वाले ग्रुप मेंबर्स को लगभग सवा महीने तक स्ट्रीक्ट रूल्स फॉलो करने पड़ते हैं। जैसे कि पैरों में चप्पल-जूते नहीं पहनना। हरी सब्जी यानि की ग्रीन वेजिटेब्लस नहीं खाना। सवा महीने तक बैड रेस्ट नहीं करना और तो और नोनवेज को भी छोड़ना पड़ता है। गवरी खेल में डांस, आर्ट, स्टोरी, ड्रामा, डांस परफोर्मेंस और डांस फॉर्मेशन, स्टैप, मास्क पहनना सब मिक्स होता है। इस ट्रेंड का सिर्फ एक मोटो होता है कि गांव में हैप्पीनैस रहे। बताया जाता है कि इस ट्रेडिशन के अकोर्डिंग आदिवासी समाज लगभग सवा महीने तक भगवान शंकर और माता पार्वती की आराधना करते हैं।

गवरी नृत्य (Gavari Dance) के दौरान इसमें मांदल और थाली के यूज करते हैं। इसलिए इसे राई डांस के नाम से भी जाना जाता है। बताया यह भी जाता है कि भादो माह में भगवान शंकर के साथ माता पार्वती धरती पर भ्रमण के लिए आते हैं। आदिवासी भील समाज में माता पार्वती को बहन बेटी के रूप में मानते हैं। जिसके चलते गवरी धार्मिक नृत्य में कई नाट्यों के द्वारा आदिवासी भील समाज से जुड़े लोग उन्हें खुश करने के लिए गवरी खेलते हैं और सवा महीने तक स्ट्रिक्ट्स रूल फॉलो करते हैं।

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