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Dharma Aastha: 9 बेहद जहरीले पदार्थों से बनी है मूर्ति, रोज होता है अभिषेक और फिर उस जल को पीते हैं भक्त…
हमारे देश भारत में अनेक मंदिर है जो अपनी अनोखी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। यहां अपने सुना होगा कि मंदिर में विराजमान भगवानों की मूर्तियां सोनी, चांदी और अन्य आभूषणों से सुसज्जित है। लेकिन क्या आपने सुना है कि एक ऐसी भी भगवान की मूर्ति है जो बेहद जहरीले पदार्थ से बनी है। और उसे पर भी आश्चर्य करने वाली बात यह है कि जहरीली पदार्थ से बनी मूर्ति को प्रतिदिन स्नान कराया जाता है और स्नान करें हुए जल को भक्त अराम से ग्रहण करते हैं। मान्यता यह भी है कि इस स्नान करें हुए जल को ग्रहण करने के बाद भक्तों की कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। यह मंदिर तमिलनाडु के पनलि में है। जिसे भगवान मुरुगन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
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भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं मुरुगन
भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के कई प्रसिद्ध और भव्य मंदिर स्थित हैं। जो भगवान मुरुगन के अलग अलग रूपों को समर्पित है। भगवान मुरुगन को रक्षक देव भी कहा जाता है। तमिलनाडु पलनि में भगवान मुरुगन का एक विशाल मंदिर है। लेकिन इसकी भी अनोखी विशेषता है। यहाँ भगवान मुरुगन की मूर्ति है, लेकिन ये मूर्ति सोने चांदी की नहीं, बल्कि 9 ज़हरीले पदार्थो से बनी है। आश्चर्य में डालने वाली बात यह भी है कि भगवान कि इस मूर्ति को हर रोज़ स्नान कराया जाता है और इस मूर्ति के स्नान वाले जल को भक्त ग्रहण करते हैं ।
मूर्ति ज़हरीली पर बनती है दवाई
मुरुगन स्वामी की मूर्ति 9 बेहद जहरीले पदार्थों को मिलाकर बनाई गई है। हालाँकि आयुर्वेद में इन जहरीले पदार्थों को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि निर्माण की प्रक्रिया का भी वर्णन है। मुरुगन स्वामी की मूर्ति से भी ऐसी ही औषधि का निर्माण होता है, जिससे कई रोग मिट जाते हैं।
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मंदिर का इतिहास एवं निर्माण
डिंडीगुल के पलनि के शिवगिरि पर्वत स्थित मुरुगन स्वामी के इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। हालाँकि वर्तमान मंदिर का निर्माण चेर राजाओं द्वारा कराया गया है, लेकिन इसका वर्णन स्थल पुराण और तमिल साहित्य में मिलता है। एक कथा के अनुसार, जब महर्षि नारद ने भगवान शिव और माता पार्वती को ‘ज्ञानफलम’ अर्थात ज्ञान का फल उपहार स्वरूप दिया तो भगवान शिव ने उसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय स्वामी में से किसी एक को देने का निर्णय लिया। इसके लिए दोनों के सामने यह शर्त रखी गई कि जो भी सम्पूर्ण संसार की परिक्रमा शीघ्रता से कर लेगा, उसे यह फल प्राप्त होगा। इसके बाद कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल गए पूरे संसार की परिक्रमा करने लेकिन भगवान गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर ली और कहा कि उनके लिए उनके माता-पिता ही संसार के समान हैं। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वह ज्ञानफल भगवान गणेश को दे दिया। जब कार्तिकेय स्वामी परिक्रमा करके लौटे तो नाराज हो गए कि उनकी परिक्रमा व्यर्थ हो गई। इसके बाद कार्तिकेय स्वामी ने कैलाश पर्वत छोड़ दिया और पलनि के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे। यहाँ ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान हैं।
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चेर वंश के शासकों ने कराया निर्माण
मंदिर का निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के शासक चेरामन पेरुमल ने कराया। कहा जाता है कि जब पेरुमल ने पलनि की यात्रा की तो उनके सपनों में कार्तिकेय या मुरुगन स्वामी आए और पलनि के शिवगिरि पर्वत पर अपनी मूर्ति के स्थित होने की बात राजा को बताई। राजा पेरुमल को वाकई उस स्थान पर कार्तिकेय स्वामी की मूर्ति प्राप्त हुई। जिसके बाद पेरुमल ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद चोल और पांड्य वंश के शासकों ने 8वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के विशाल मंडप और गोपुरम बनवाए। मंदिर को सुंदर कलाकृतियों से सजाने का काम नायक शासकों ने किया।
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‘पंचतीर्थम प्रसादम’
पलनि के इस मुरुगन स्वामी मंदिर की विशेषता यहाँ का प्रसाद है। जिसे ‘पंचतीर्थम प्रसादम’ कहा जाता है। पलनि के इस विशेष प्रसाद को भौगोलिक संकेत या GI टैग भी प्रदान किया गया है। पलनि के इस पंचतीर्थम का निर्माण केला, घी, इलायची, गुड़ और शहद से किया जाता है। तिरुपति के लड्डू की तरह पलनि का यह पंचतीर्थम प्रसाद भी अत्यंत प्रसिद्ध है।
मंदिर 689 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं
पलनि के अरुल्मिगु दंडायुधपाणी मंदिर के गोपुरम को सोने से मढ़ा गया है। मंदिर का परिसर काफी विशाल है और यहाँ तक पहुँचने के लिए 689 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। हालाँकि मंदिर के गर्भगृह तक जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है लेकिन फिर भी यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बनी रहती है। मंदिर परिसर में ही भगवान शिव और माता पार्वती, भगवान गणेश और ऋषि बोगार की समाधि है। ऋषि बोगार आयुर्वेद के विद्वान माने जाने जाते हैं और उन्होंने ही मुरुगन स्वामी की मूर्ति का निर्माण किया है।
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