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Dharma Aastha: ये है भारत का सबसे पुराना मंदिर, यहाँ के चमत्कार देखकर विदेशी भी हैरान
दुनिया का सबसे प्राचीन और पुराना मंदिर कौन सा है यह कहना तो असंभव है, लेकिन भारत के सबसे पुराने मंदिर की बात की जाये, तो बिहार में स्थित मुंडेश्वरी मंदिर सबसे पुराना और प्राचीन मंदिर माना जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार यह मंदिर 108 ई. में बनाया गया था और 1915 के बाद से एक संरक्षित स्मारक है। माता मुंडेश्वरी का मंदिर बिहार के जिला कैमूर में मुंडेश्वरी पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। मंदिर परिसर में पाए गए कुछ शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं। मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह आज तक कायम है।
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51 शक्तिपीठों में से एक है
मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर में स्थित दुनिया का सबसे पुराना मंदिर है। जहां आज भी पूजा-पाठ प्राचीन विधि विधान से ही होती आ रही है। मां मुंडेश्वरी का मंदिर इस देश के 51 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है। मुंडेश्वरी मंदिर नागर शैली वास्तुकला में बने मंदिरों का सबसे पुराना प्रतिरूप है।
रक्तहीन बलि की प्रथा है अनोखी
जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा आदिकाल से होती आ रही है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है रक्त विहीन बलि। मनोकामना पूर्ण होने के बाद कोई श्रद्धालु चढ़ावे में खस्सी (बकरा) चढ़ाता है। पुजारी द्वारा बकरे को मां मुंडेश्वरी के चरण में रखा जाता है। मां के चरण में अक्षत (चावल) का स्पर्श करा पुजारी उस अक्षत को बकरे पर फेंकता है। अक्षत फेंकते ही बकरा अचेतावस्था में मां के चरण में गिर जाता है।
कहते हैं कि कुछ क्षण के बाद पुन: पुजारी द्वारा अक्षत को मां के चरण से स्पर्श करा बकरे पर फेंका जाता है और अक्षत फेंकते ही तुरंत बकरा अपनी मूल अवस्था में आ जाता है।
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चण्ड-मुण्ड का किया था वध
माना जाता है कि चण्ड-मुण्ड नाम के असुरों का वध करने के लिए देवी यहां आई थी। चण्ड के विनाश के बाद मुण्ड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुण्ड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी पर बिखरे हुए पत्थर और स्तम्भ को देखने से लगता है कि उनपर श्रीयंत्र जैसे कई सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं।
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पंचमुखी शिवलिंग जो बदलता है रंग
मां मुण्डेश्वरी मंदिर में भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है। जिसके बारे में बताया जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। देखते ही देखते कब पंचमुखी शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता।
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