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राजस्थान के प्रसिद्ध गणेश मंदिरों की जानकारी

Ganesh Temple Jaipur

by PP Singh
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Ganesh Temple Jaipur | राजस्थान के प्रसिद्ध गणेश मंदिरों की जानकारी

आज है बुधवार और इसीलिए हम आपके लिए लाए हैं राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध गणेश मंदिरों की जानकारी, जिनकी मान्यताएं बेहद खास हैं और साथ ही यहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। सभी मंदिरों का अपना अलग और सशक्त इतिहास भी रहा है।

त्रिनेत्र मंदिर, रणथंभौर ( trinetra ganesha temple )

राज्य के सवाईमाधोपुर जिले से 10 किलोमीटर दूर रणथंभौर किले में प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थापित है। यहां भगवान गणेश अपनी पत्नियों रिद्धि सिद्धि और पुत्र शुभ लाभ के साथ विराजित हैं। मान्यता है कि कोई भी शुभ काम करने से पहले चिट्ठी भेजकर भगवान को निमंत्रित किया जाता है, जिससे उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न हो सकें। गणेश जी के चरणों में यहां लगातार शादी के कार्ड चढ़ाए जाते हैं। यहां भगवान की मूर्ति में तीन आंखें हैं, जिसकी वजह से इन्हें त्रिनेत्र गजानन के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर 10वीं सदी में रणथंभौर के राजा हमीर ने बनवाया था। मंदिर की मूर्ति स्वयंभू है।

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गढ़ गणेश, जयपुर ( garh ganesh temple jaipur )

देश का संभवत: ये एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां बिना सूंड वाले गणेश जी विराजमान है। दरअसल यहां गणेशजी का बालरूप विद्यमान है।
रियासतकालीन यह मंदिर गढ़ की शैली में बना हुआ है। इसलिए इसका नाम गढ़ गणेश मंदिर पड़ा। गणेश जी के आशीर्वाद से ही जयपुर की नींव रखी गई थी। यहां गणेशजी के दो विग्रह हैं। जिनमें पहला विग्रह आंकडे की जड़ का और दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है। नाहरगढ़ की पहाड़ी पर महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेश जी के बाल्य स्वरूप वाली इस प्रतिमा की विधिवत स्थापना करवाई थी। मंदिर परिसर में पाषाण के बने दो मूषक स्थापित हैं, जिनके कान में भक्त अपनी इच्छाएं बताते हैं और मूषक उनकी इच्छाओं को बाल गणेश तक पहुंचाते हैं। मंदिर सिर्फ गणेश चतुर्थी के दिन खुलता है।

मोती डूंगरी, जयपुर ( moti dungri ganesh temple )

जयपुरवासियों के लिए मोती डूंगरी एक खास मंदिर है। मंदिर की एक विशेष मान्यता है, जिसके कारण भक्त शहर के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। दरअसल जयपुरवासियों का मानना है कि नई गाड़ी खरीदने के तुंरत बाद सबसे पहले इस मंदिर में लाकर पूजा करनी चाहिए। इससे वाहन शुभ फल देता है। मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति जयपुर के राजा माधोसिंह प्रथम की रानी के पीहर मावली से लाई गई थी। माना जाता है कि ये प्रतिमा करीब पांच सौ साल पुरानी है। मावली से ये प्रतिमा पल्लीवाल नाम के एक सेठ जयपुर लेकर आए थे। पल्लीवाल सेठ की देखरेख में ही मोती डूंगरी का ये प्रसिद्ध मंदिर बनवाया गया था।

सिद्ध गजानंद, जोधपुर ( jodhpur ratanada ganesh mandir )

जोधपुर के रातानाडा में स्थिम ये मंदिर 150 साल पुराना बताया जाता है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर की भूतल से उंचाई करीब 108 फीट है। मंदिर श्रद्धालुओं के साथ ही कला शिल्प प्रेमियों को भी खूब भाता है। शहरवासियों का मानना है कि विवाह के दौरान यहां निमंत्रण देने से शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं आती। इसलिए जोधपुर के हर घर में शादी से पहले यहां निमंत्रण दिया जाता है और विधि विधान से गणेश जी की प्रतीकात्मक मूर्ति ले जाकर विवाह स्थल पर स्थापित की जाती है। विवाहोपरांत मूर्ति पुन: मंदिर में रख दी जाती है। मंदिर में लोग मौली बांधकर अपनी मनौतियां भी भगवान को बताते हैं। कहा जाता है कि यहां जो मांगा जाता है, वो मिलता है। मंदिर की एक मान्यता और है। चूंकि मंदिर उंचाई पर स्थित है। इसलिए यहां मौजूद पत्थरों से छोटा घर बनाया जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से लोगों का खुद का मकान बनता है।

बोहरा गणेश मंदिर, उदयपुर ( bohra ganesh ji udaipur )

उदयपुर का ये मंदिर करीब 350 साल पुराना है। 7—8 दशक पहले तक पैसे की जरूरत होने पर लोग कागज के टुकड़े पर आवश्यकता के बारे में लिखकर मूर्ति के पास छोड़ देते थे। बाद में ये पैसा ब्याज सहित भगवान को लौटाते थे।

नहर के गणेश जी, जयपुर ( nahar ke ganeshji jaipur )

जयपुर में नाहरगढ़ की पहाड़ियों की तलहटी में बने इस मंदिर में विराजमान गणेश जी की प्रतिमा की सूंड दाहिनी तरफ है। मान्यतानुसार यहां सिर्फ उल्टा स्वास्तिक बनाने से ही बिगड़े काम बनने लगते हैं।

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