Home दंत कथाएं Rajasthan : रात्रि में उस रहस्यमय मंदिर के पास ठहरना, बेहद खतरनाक है।

Rajasthan : रात्रि में उस रहस्यमय मंदिर के पास ठहरना, बेहद खतरनाक है।

by Local Patrakar
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Rajasthan का सबसे पुरान मंदिर! जहां रात को सब बन जाता है पत्थर

Rajasthan का सबसे पुरान मंदिर! जहां रात को सब बन जाता है पत्थर

हमारे देश में कई ऐसी जगह हैं जो अपने आप में एक इतिहास संजोय हुए है। राजस्थान में भी कई ऐसी ऐतिहासिक और रहस्यमय जगह हैं जो अनोखी और विचित्र हैं। आज हम ऐसे ही रहस्यमय मंदिर के बारे में आपको बताएंगे। यह मंदिर बाड़मेर में हैं और इसे किराडू मंदिर के नाम से जाना जाता है। किराडू मंदिर को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कहते हैं कि 1161 ईसा पूर्व इस जगह का नाम ‘किराट कूप’ था।

सूर्यास्त के बाद पत्थर बन जाते हैं सब

बाड़मेर जिले में स्थित किराडू मंदिर स्थापत्य कला जितना प्रसिद्ध है उतना ही ​रहस्यमय भी है। जहां से शाम ढलते ही लोग भाग जाते हैं। रात को तो यहां भूलकर भी कोई रुकना नहीं चाहता। इसके पीछे वजह ये बताई जाती है कि जो भी इंसान यहां रात को रुक जाता है, वो पत्थर का बन जाता है। कहानी है कि कई साल पहले, किराडू में एक सिद्ध साधु अपने कुछ शिष्यों के साथ आए थे। एक दिन वह अपने शिष्यों को वहीं छोड़कर कहीं भ्रमण के लिए चले गए। इसी बीच एक शिष्य की तबीयत खराब हो गई। उसके बाद बाकी शिष्यों ने गांव वालों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।

Rajasthan का सबसे पुरान मंदिर! जहां रात को सब बन जाता है पत्थर

एक महिला ने की थी मदद

स्थानीय लोगों का कहना है कि एक महिला ने साधु के शिष्यों की मदद की थी। इसलिए उस साधु ने महिला से कहा था कि वो शाम ढलने से पहले गांव छोड़कर चली जाए और पीछे मुड़कर ना देखे, लेकिन महिला नहीं मानी और पीछे मुड़कर देखने लगी, जिसके बाद वो पत्थर की बन गई। मंदिर से कुछ ही दूरी पर उस महिला की मूर्ति भी स्थापित है।

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राजस्थान का सबसे पुरान मंदिर!

किराडू पांच मंदिरों की एक श्रृंखला है। जिसमें से भगवान विष्णु और भगवान शिव के मंदिर ही थोड़े ठीक हालात में हैं, जबकि बाकी के मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। इन मंदिरों का निर्माण किसने कराया था। यह सवाल आज तक सवाल ही बना हुआ है। लेकिन मंदिरों की बनावट को देखकर यह अंदाजा लगाया जाता है कि शायद दक्षिण के गुर्जर-प्रतिहार वंश, संगम वंश या फिर गुप्त वंश के काल में करीब 1161 ईसा पूर्व इसका निर्माण हुआ होगा।

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