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Srirangam Temple in Tiruchirappalli :
आपने मिश्र और वहां सर्दियों पुरानी सुरक्षित रखी गई मम्मी के बारें में तो सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में भी एक शख्सियत का शव कई सर्दियों से सहज कर रखा गया है। वो भी बिना किसी रासायनिक लेप को लगाए। जी हां, हम बात कर रहें हैं..आचार्य श्री रामानुजाचार्य की। रामानुजाचार्य के जीवन से जुड़ी सबसे आश्चर्य की बात यह है कि रामानुजाचार्य के मूल शरीर को आज भी तिरुचरापल्लि के श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में संभाल कर रखा गया है। यह शरीर हजारों वर्ष से आज तक संजोकर रखा गया है।
कौन थे रामानुजाचार्य
वर्ष 1017 ई. में मद्रास के पश्चिम में 25 मील की दूरी पर पेरम्बुदुर गांव में हुआ। उनके पिता केशव सोमिया जी थे और माता का नाम कांतिमाथी था। रामानुज का तमिल नामरामानुज का तमिल नाम इलैय पेरूमल था। जीवन की शुरुआत में ही रामानुज ने अपने पिता को खो दिया था।
रामानुज कांचीपुरा में वेद शिक्षा लेने के लिए आचार्य यादाव्प्रकाश जी के पास गए थे। वह आद्वेत दार्शनिक के प्रथम आचार्य थे।
मृत शरीर श्री रंगनाथन स्वामी मंदिर में संरक्षित
वैष्णव दार्शनिक गुरु रामानुज आचार्य जी का शरीर 1137 से श्री रघुनाथस्वामी मंदिर श्रीरंगम तिरुचिनारपल्ली के अंदर संरक्षित है। श्री रामानुजाचार्य वैष्णव वाद परंपरा के प्रतिपादक थे। हर साल उनके शरीर पर चंदन और केसर का लेप लगाया जाता है और कोई अन्य रसायन नहीं नहीं लगाया जाता। इस परंपरा को 878 सालों से अधिक वर्षों से अभ्यास में लिया जा रहा है। साल में दो बार केसर के साथ मिश्रित कपूर का एक कोड शरीर पर लगाया जाता है जो संरक्षित शरीर पर गेरू यानि नारंगी रंग जैसा दिखता है।
अभी भी बढ़ते हैं नाखून
मिस्र की मम्मी को कई परतों के बीच में रखा जाता है और उन पर कई रसायन भी लगाए जाते हैं, ताकि उनके शरीर को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन रामानुजाचार्य मूर्ती यानि शरीर को सामान्य रूप से बैठी हुई मुद्रा में रखा गया है। जो भक्तों के दर्शनों के लिए खुले में रखी गई है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि नाखून आज भी बड़े हो रहे हैं और अगर उनकी नाखूनों को देखा जाए किसी जीवीत प्राणी के लगते हैं।
क्यों प्रसिद्ध है रामानुजाचार्य
एक बार तिरुपति बालाजी के मंदिर से भगवान गोविंदा राजा की मूर्ति को शिवाप्रथा के लोगों ने समुद्र में फेंक दिया था। रामानुज ने तिरुपति की मूर्ति को फिर से निकलकर स्थापित किया था।
रामानुजाचार्य ने अस्पृश्यों के साथ भेदभाव न करने की बात करते हुए कहा कि विश्व-रचयिता ने कभी किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया। इन्होंने जन्म या जाति की बजाय व्यक्ति के आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर सम्मान की बात की तथा वेदों के गोपनीय और सर्वोत्कृष्ट ज्ञान को मंदिरों से निकाल कर आमजन तक पहुँचाया।
लक्ष्मण का अवतार थे रामानुजाचार्य
ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म चिथिराई महीने में तिरुवाधिराई नक्षत्र में हुआ था। वे उसके जीवन को 1017-1137 ई.पू. की अवधि में रखते हैं, जिससे 120 वर्ष का जीवनकाल प्राप्त होता है। रामानुजाचार्य को लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है। रामानुजाचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था- ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना। रामानुज भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी के परम भक्त थे। उन्होंने लोगों को शिक्षा एवं भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने मोक्ष के सिद्धांतों के बारे में सिखाया। रामानुजाचार्य जाति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ थे।