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Bhartrihari caves of Madhya Pradesh :
विक्रमादित्य का नाम तो आपने सुना ही होगा। उज्जैन के राजा थे विक्रमादित्य। लेकिन क्या आपको पता है इनसे पहले उज्जैन नगरी के राजा थे भर्तृहरि। जी हां, वहीं महान संत जो गुरू गोरखनाथ के शिष्य थे, जिनकी उनके साथ अनेक कहानियां प्रचलित हैं। माना जाता है कि राजा भर्तृहरि अपने छोटे भाई विक्रमादित्य से भी महान राजा थे, लेकिन उनके साथ हुई कुछ घटनाओं ने उन्हें एक तपस्वी बना दिया। उन्होंने अपना राजपाठ छोड़कर 12 वर्षो तक कठिन तपस्या की और कई सिद्धियां हासिल की। उनकी सिद्धियों के चलते वे कहीं भी आ जा सकते थे। आज भी उज्जैन में उनकी तपस्या स्थल उनकी गुफाएं मौजूद हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे गुफाएं इतनी लंबी है कि उनका दूसरा द्वार अन्य राज्यों में निकलता है। ऐसी ही एक गुफा राजस्थान के अलवर में भी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इन गुफाओं का रास्ता उज्जैन में कहीं निकलता है।
राजा भरथरी से बने तपस्वी ‘भर्तृहरि’
योगीराज भर्तृहरि के पिता उज्जैयनी नरेश महाराज गंधर्वसेन थे। उनके चार पुत्र थे जिनमें से सबसे बड़े थे भरथरी। बताया जाता है कि भरथरी एक महान शासक थे, लेकिन उनका मन हमेशा अपनी छोटी पत्नी पर ही अटका रहता था। दुनिया में सब नश्वर है और उन्हें सब ध्यान में रखते हुए अपने राजधर्म पर देना चाहिए, यही याद दिलाने गुरु गोरखनाथ से उनकी भेंट हुई। जिसको लेकर अनेक कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन गुरु गोरखनाथ से मुलाकात के बाद राजा भरथरी में वैराग्य जागा और वे गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए और कठिन तपस्या की। जिससे उनको कई सिद्धियां प्राप्त हुई।
भर्तृहरि कैसे पहुंचे राजस्थान
राजा भर्तृहरि को अपने जीवन का सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उन्हें भाग्य के संयोग से पता चला कि उनकी सबसे छोटी, और सबसे प्यारी रानी एक दरबारी के प्रेम में थी। तब संसार से निराश होकर भर्तृहरि ने अपना राज्य त्याग दिया और भगवान शिव का ध्यान करने के लिए जंगल में चले गए। वहां से भर्तृहरि गुरु गोरखनाथ की शरण में चले गए और उनके साथ ही राजस्थान के अलवर क्षेत्र में पहुँचे। जहाँ उन्हें अपनी खोज का उद्देश्य प्राप्त हुआ और अंत में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। बाद में भर्तृहरि के शिष्यों ने उनके पार्थिव शरीर को सुरक्षित रखने के लिए उनके सम्मान में एक मंदिर बनवाया। यह मंदिर हरी-भरी पहाड़ी से घिरा हुआ है और पास में ही एक झरना है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान ने भर्तृहरि की उस स्थान पर पानी के स्रोत की प्रार्थना की। जहां वह तपस्या कर रहे थे। तो एक चट्टान के नीचे से एक नाला प्रकट हुआ। अब इस मंदिर में हजारों लोगों की भीड़ आती है। भर्तृहरि के अनुयायी समाधि मंदिर में हमेशा एक पवित्र अग्नि प्रज्वलित रखते हैं।
उज्जैन में हैं भर्तृहरि की गुफाएं
उज्जैन स्थित गुफा में योगीराज भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। भर्तृहरि की कठोर तपस्या से देवराज इंद्र को भय हुआ कि कहीं यह मेरा सिहासन ना प्राप्त कर ले। इसलिए इंद्र ने योगिराज भर्तृहरि की तपस्या भंग करने के लिए वज्र अस्त्र का प्रहार किया। अपने तप के प्रभाव से योगिराज भर्तृहरि ने अपने एक हाथ से वज्र के प्रहार को शिला के ऊपर ही रोककर निशप्रभाव कर दिया। आज भी गुफा में ऊपरी शिला पर उनके हाथों का निशान प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में है। इस स्थान पर उन्होंने कठोर तपस्या कर अनेक सिद्धियां प्राप्त की थी। वह शरीर को छोटा और वायु सामान हल्का बनाकर कभी हरिद्वार, कभी उज्जैन इत्यादि गुफा स्थानों पर प्रकट हो जाते थे और कभी दोनों स्थानों पर एक समय पर प्रकट हो जाते थे।